SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 551
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा उपालम्भ भी प्रदान करना चाहिए। जैसा कि भगवान महावीर ने मेघकुमार को दिया।' द्वितीय अध्ययन के प्रान्त में लिखा है-बिना आहार के मोक्ष के साधनों में प्रवृत्ति नहीं हो सकती । अतः शरीर को आहार देना चाहिए जैसा कि धन सार्थवाह ने विजय चोर को दिया । तृतीय अध्ययन का सार प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि विज्ञों को जिन वचनों के प्रति किञ्चित् मात्र भी सन्देह नहीं करना चाहिए क्योंकि संदेह ही अनर्थ का मूल है। जिनके अन्तमनस में शंकाएँ होती हैं वे सागरदत्त की भाँति निराशा के सागर में झूलते हैं और जिन्हें शंका नहीं होती है वे जिनदत्त की तरह सफलता देवी का वरण करते हैं । इसी तरह अन्य सभी अध्ययनों का अभिधेयार्थ प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में धर्म-कथाओं से ही धर्मार्थं का प्रतिपादन किया गया है। इसका विवेचन वृत्तिकार ने नहीं किया है । 'सर्वः सुगम:' और 'शेषं सूत्रसिद्धम्' इतना ही लिखा गया है। इस वृत्ति का श्लोक प्रमाण ३८०० है । यह वृत्ति १९२० में विजयदशमी को अणहिल पाटण में पूर्ण हुई है। अभयदेव ने अपने गुरु का नाम 'जिनेश्वर' बताया है । उपासकदशाङ्गवृत्ति प्रस्तुत वृत्ति भी सूत्रस्पर्शी है। इसमें विशेष शब्दों के अर्थ का स्पष्टीकरण किया गया है । शब्दार्थ की प्रधानता होने से यह वृत्ति अधिक विस्तृत नहीं है। प्रथम भगवान महावीर को नमस्कार कर उपासक का अर्थ श्रमणोपासक और दशा का अर्थ दस किया है। श्रमणोपासक सम्बन्धी साधना का प्रतिपादन करने के कारण इसका नाम उपासकदशा है। इस ग्रंथ का नाम बहुवचनान्त है । कहीं-कहीं पर वृत्ति में व्याख्यान्तर का भी निर्देश है वृत्ति का ग्रंथमान ८१२ श्लोक प्रमाण है । वृत्ति लेखन के स्थान एवं समय आदि का निर्देश नहीं किया गया है। अन्तकृतदशावृत्ति यह वृत्ति सूत्रानुसार ही है। जिन पदों की वृत्तिकार ने व्याख्या नहीं की है उन पदों के लिए ज्ञाताधर्मकथावृत्ति को देखने का निर्देश किया गया है । यहाँ पर अन्तकृत का अर्थ है जिन्होंने अपने भव का अन्त किया है । अन्तकृत सम्बन्धी अंग विशेष प्रस्तुत आगम जिसकी शैली दशाध्ययन रूप
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy