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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५१७ द्वितीय अध्ययन में वैशेषिक दर्शनकार कणाद ने ईश्वर की जो कल्पना की है और वेदों को अपौरुषेय कहा है उस कल्पना को असंगत बताकर उसका तार्किक दृष्टि से निराकरण किया है। अचेलक परीषह का विवेचन करते हुए कहा - वस्त्र धर्म साधना में एकान्त रूप से बाधक नहीं है। धर्म का वास्तविक बाधक तत्त्व कषाय है। कषाययुक्त धारण किया गया वस्त्र बाधक है । जो धार्मिक साधना के लिए वस्त्र धारण करता है वह साधक है । जैसे पात्र आदि । चतुर्थ अध्ययन की वृत्ति में जीवकरण पर विचार करते हुए जीवभावकरण के श्रुतकरण और नोश्रुतकरण ये दो भेद हैं। पुनः श्रुतकरण के -बद्ध और अबद्ध ये दो भेद हैं। बद्ध के निशीथ और अनिशीथ ये दो भेद हैं। उनके भी लौकिक और लोकोत्तर ये दो भेद किये गये हैं। निशीथ आदि लोकोत्तर निशीथ है और बृहदारण्यक आदि लौकिक निशीथ है । आचारांग आदि लोकोत्तर अनिशीथश्रुत हैं । पुराण आदि लौकिक अनिशीथ श्रुत हैं। लौकिक और लोकोत्तर भेद से अबद्धश्रुत के भी दो प्रकार हैं। अबद्धश्रुत के लिये कई कथाएं भी दी गई हैं। प्रस्तुत टीका में विशेषावश्यकभाष्य, उत्तराध्ययनचूर्णि आवश्यक चूर्णि, सप्तशतारनयचक्र, निशीथ, बृहदारण्यक, उत्तराध्ययनभाष्य, स्त्रीनिर्वाण सूत्र, आदि ग्रन्थों का निर्देश है। साथ ही जिनभद्र, भर्तृहरि, वाचक सिद्धसेन, वाचक अश्वसेन, वात्स्यायन, शिवशर्मन्, हारिल वाचक, गंधहस्तिन्, जिनेन्द्रबुद्धि आदि व्यक्तियों के नाम भी टीका में आये हैं। द्रोणाचार्यकृत वृति द्रोणाचार्य के सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है। वे पाटण जैन संघ के प्रमुख थे। उन्होंने नवाङ्गी टीकाकार अभयदेव सूरि की टीकाओं का संशोधन किया था। उनका समय विक्रम की ग्यारहवीं-बारहवीं शती है। उन्होंने ओघनिर्मुक्ति व लघुभाष्य पर वृत्ति लिखी है । उसमें भाषा की सरलता और शैली की मधुरता का मधुर संगम है। मूल पदों के शब्दार्थ के साथ, उन सभी विषयों पर संक्षेप में विवेचन भी किया गया है। प्राकृत और संस्कृत भाषा के उद्धरणों का भी यत्र-तत्र प्रयोग हुआ है। प्रथम पंचपरमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। सामायिक का वर्णन करते हुए उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय ये चार अनुयोगद्वार हैं। उसमें
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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