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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
२२००० श्लोक प्रमाण है। लेखक ने अन्त में अपना संक्षेप में परिचय भी दिया है। कोट्याचार्य का विवरण
कोट्याचार्य ने आचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के अपूर्ण स्वोपज्ञ भाष्य को पूर्ण किया और विशेषावश्यकभाष्य पर एक नवीन वृत्ति भी लिखी है पर उन्होंने वृत्ति में आचार्य हरिभद्र का कहीं पर भी उल्लेख नहीं किया है। इससे यह ज्ञात होता है कि ये हरिभद्र के समकालीन या पूर्ववर्ती होंगे । कोट्याचार्य ने जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का श्रद्धास्निग्ध स्मरण किया है। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति में कोट्याचार्य का प्राचीन टीकाकार के रूप में उल्लेख किया है। प्रभावकचरित्रकार ने आचार्य शीलांक और कोट्याचार्य को एक माना है परन्तु शीलांक और कोट्याचार्य दोनों का समय एक नहीं है। कोट्याचार्य का समय विक्रम की आठवीं शती है तो शीलांक का समय विक्रम की नौवीं-दसवीं शती है अत: वे दोनों पृथक्-पृथक् हैं।
___ कोट्याचार्य का प्रस्तुत विशेषावश्यकभाष्य पर जो विवरण है वह न अति संक्षिप्त है और न अति विस्तृत ही है। विवरण में जो कथायें उद्रडित की हैं वे प्राकृत भाषा में हैं। विवरण का ग्रन्थमान १३७०० श्लोक प्रमाण है। आचार्य गन्धहस्ती का विवरण
आचार्य शीलांक ने अपने आचारांग विवरण में लिखा है कि 'आचार्य गंधहस्ती ने आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा पर विवरण लिखा था जो अत्यन्त क्लिष्ट था।' वर्तमान में वह अनुपलब्ध है।' तत्त्वार्थभाष्य पर बृहद्वत्ति लिखने वाले सिद्धसेन जिनका अपर नाम गंधहस्ती था-वे और आचारांग के विवरणकार सिद्धसेन ये दोनों एक ही व्यक्ति हैं। इनका समय विक्रम की सातवीं और नौवीं शती के मध्य का है। ये आगम के मर्मज्ञ विद्वान थे। आगम विरुद्ध मान्यताओं के खण्डन करने में ये अतिनिपुण थे। अत: इन्हें गंधहस्ती कहा गया हो। शस्त्रपरिज्ञाविवरण अनुपलब्ध होने से उस सम्बन्ध में कुछ भी लिखना संभव नहीं है।
निर्वृतिकुलीन श्री शीलाचार्येण तत्त्वादित्यापरनाम्ना वाहरिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाप्तेति ।
-आचारांगटीका प्र० स० का मन्त