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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
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मोक्खपज्जवसाणफलत्तेण महाफलं । बौद्धदर्शन ने चित्त को ही नियंत्रण में लेना आवश्यक माना तो उसका निराकरण करते हुए कहा- 'काय का भी नियंत्रण आवश्यक है'।
दार्शनिक विषयों की चर्चाएँ भी यत्र-तत्र हुई हैं। प्रस्तुत चूर्णि में तत्वार्थसूत्र, आवश्यक नियुक्ति, ओघनियुक्ति, व्यवहारभाष्य, कल्पभाष्य, आदि ग्रन्थों का भी उल्लेख हुआ है ।
anderer चूर्ण (जिनदास )
यह चूर्णि दशवेकालिक नियुक्ति के आधार से लिखी गई है। प्रथम अध्ययन में एकक, काल, द्रुम, धर्म आदि पदों का निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया है। आचार्य शय्यंभव का जीवन-वृत्त भी दिया है। दस प्रकार के श्रमणधर्म, अनुमान के विविध अवयव आदि पर प्रकाश डाला है। द्वितीय अध्ययन में श्रमण के स्वरूप पर चिन्तन करते हुए पूर्व, काम, पद, शीलाङ्गसहस्र, आदि पदों पर विचार किया है। तृतीय अध्ययन में दृढ़ धृतिक के आचार का प्रतिपादन है। उसमें महत्, क्षुल्लक, आचार- दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार, अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा, मिश्रकथा, अनाचीर्ण आदि का विश्लेषण किया गया है।
चतुर्थ अध्ययन में जीव, अजीव, चारित्र, यतना, उपदेश, धर्मफल आदि का परिचय दिया है। पञ्चम अध्ययन में श्रमण के उत्तरगुण - पिण्डस्वरूप, भक्तपानैषणा, गमनविधि, गोचरविधि, पानकविधि, परिष्ठापनविधि, भोजनविधि आदि पर विचार किया गया है। षष्ठम अध्ययन में धर्म, अर्थ, काम, व्रतषट्क, कायषट्क, आदि का प्रतिपादन है। इसमें आचार्य का संस्कृत भाषा के व्याकरण पर प्रभुत्व दृष्टिगोचर होता है । सप्तम अध्ययन में भाषा सम्बन्धी विवेचना है। भाषा की शुद्धि, अशुद्धि, सत्य, मृषा, सत्यमृषा, असत्यामृषा पर प्रकाश डाला है। अष्टम अध्ययन में इन्द्रियादि प्रणिधियों पर विचार किया है। नौवें अध्ययन में लोकोपचार विनय, अर्थ विनय कामविनय, भयविनय, मोक्षविनय की व्याख्या है। दशम asara में भिक्षु के गुणों का उत्कीर्तन किया है। चूलिकाओं में रति, अरति, विहार विधि गृहिवैयावृत्य का निषेध, अनिकेतवास प्रभृति विषयों से सम्बन्धित विवेचना है। चूर्णि में तरंगवती, ओघनिर्युक्ति, पिण्डनिर्युक्ति आदि ग्रन्थों का नाम निर्देश भी किया गया है। भाषा मुख्य रूप से प्राकृत है । इस चूर्ण के रचयिता जिनदासगणी महत्तर हैं।