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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४६५ षष्ठ अध्ययन में प्रत्याख्यान का विवेचन है। इसमें सम्यक्त्व के अतिचार, श्रावक के बारह व्रतों के अतिचार, दस प्रत्याख्यान, छह प्रकार की विशुद्धि, प्रत्याख्यान के गुण, आगार आदि पर अनेक दृष्टान्तों के साथ विवेचन किया है। इस प्रकार आवश्यकचूणि जिनदासगणी महत्तर की एक महनीय कृति है। आवश्यकनियुक्ति में आये हुए सभी विषयों पर चूणि में विस्तार के साथ स्पष्टता की गई है। इसमें अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन उङ्कित किये गये हैं जिनका ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। दशवकालिक चूणि (अगस्यसिंह) दशवकालिक पर दो चूणियां प्राप्त हैं। एक के कर्ता अगस्त्यसिंह स्थविर हैं तो दूसरी के कर्ता जिनदासगणी महत्तर हैं। स्थविर अगस्त्यसिंह ने अपनी वृत्ति को चुणि की संज्ञा प्रदान की है "चुण्णिसमासवयणेण दसकालियं परिसमत्तं ।” अगस्त्यसिंह ने एक भी महत्त्वपूर्ण शब्द नहीं छोड़ा है। सभी महत्त्वपूर्ण शब्दों पर उन्होंने व्याख्या की है । इस व्याख्या के लिए उन्होंने अनेक स्थलों पर विभाषा' शब्द का प्रयोग किया है। उन्हें अपनी व्याख्या के लिए विभाषा' शब्द का प्रयोग अधिक पसन्द है। बौद्ध साहित्य में सूत्र-मूल और विभाषा-व्याख्या के ये दो प्रकार हैं। विभाषा का मुख्य लक्षण है कि शब्दों के जो अनेक अर्थ होते हैं उन सभी अर्थों को बताकर प्रस्तुत में जो अर्थ उपयुक्त हो उसका निर्देश करना चाहिए । प्रस्तुत चूर्णि में यह पद्धति अपनाने के कारण इसे 'विभाषा' कहा गया है जो सर्वथा उचित है। - चणि साहित्य की यह सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि अनेक दृष्टान्त व कथाओं के माध्यम से मूल विषय को स्पष्ट किया जाता है। अगस्त्यसिंह स्थविर ने अपनी चणि में अनेक ग्रन्थों के अवतरण दिये हैं जो उनकी बहुश्रुतता को व्यक्त करते हैं । मूल आगम साहित्य में श्रद्धा की अत्यधिक प्रमुखता थी किन्तु १. विभाषा शब्द का अर्थ देखें 'शाकटायन-व्याकरण, प्रस्तावना पृ०६६ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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