________________
४६४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा दृष्टान्तों के द्वारा प्रतिपादन किया है। उपासक की एकादश प्रतिमाएँ, द्वादश भिक्षु प्रतिमाएं, तेरह क्रियास्थान, चौदह भूतग्राम तथा गुणस्थान, पन्द्रह परम अधार्मिक देव, सोलह सूत्रकृताङ्ग के अध्ययन, सत्रह असंयम, अठारह अब्रह्म, उन्नीस ज्ञाताधर्मकथा के अध्ययन, बीस असमाधिस्थान, इक्कीस शबल, बाईस परीषह, तेईस सूत्रकृतांग के अध्ययन, चौबीस देव, पच्चीस भावनाएँ, छब्बीस-दशाश्रुतस्कन्ध के दस, बृहत्कल्प के छह और व्यवहार के दस अध्ययन । सत्ताईस अनगार के गुण, अट्ठाईस प्रकार का आचारकल्प, उनतीस पापश्रुत, तीस मोहनीयस्थान, इकत्तीस सिद्धों के गुण, बत्तीस योगसंग्रह, तेतीस आशातना आदि पर चिन्तन करते हुए शिक्षा के ग्रहण और आसेवन ये दो भेद किये हैं। अभय कुमार का विस्तार से जीवन परिचय दिया है, साथ ही सम्राट् श्रेणिक, चेल्लणा, सुलसा, कोणिक, चेटक, उदायी, महापद्मनन्द, शकडाल, वररुचि, स्थूलभद्र, आदि ऐतिहासिक गक्तियों के चरित्र भी दिये हैं। अज्ञातोपधानता, अलोभ, तितिक्षा, आर्जव, शुचि, सम्यग्दर्शन, समाधान, आचार, विनय, धृति, संवेग, प्रणिधि, सुविधि, संबर, आत्म-दोष, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग, अप्रमाद, ध्यान, वेदना, संग, प्रायश्चित्त, आराधना, आशातना, अस्वाध्यायिक, आदि प्रतिक्रमण सम्बन्धी सभी प्रमुख विषयों पर उदाहरण सहित प्रकाश डाला है। व्रत की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए कहा है-प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश करना श्रेयस्कर है किन्तु व्रत का भंग करना अनुचित है। विशुद्ध कार्य करते हुए मरना श्रेष्ठ है किन्तु शील से स्खलित होकर जीवित रहना अनुचित है।
पञ्चम अध्ययन में कायोत्सर्ग का वर्णन है। कायोत्सर्ग एक प्रकार से आध्यात्मिक व्रण चिकित्सा है। कायोत्सर्ग में काय और उत्सर्ग ये दो पद हैं। काय का नाम, स्थापना आदि बारह प्रकार के निक्षेपों से वर्णन किया है और उत्सर्ग का छह निक्षेपों से । कायोत्सर्ग के चेष्टाकायोत्सर्ग और अभिभवकायोत्सर्ग ये दो भेद हैं। गमन आदि में जो दोष लगा हो उसके पाप से निवृत्त होने के लिए चेष्टाकायोत्सर्ग किया जाता है। हूण आदि से पराजित होकर जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह अभिभवकायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग के प्रशस्त एवं अप्रशस्त ये दो भेद हैं और फिर उच्छित आदि नौ भेद हैं । श्रुत, सिद्ध की स्तुति पर प्रकाश डालकर क्षामणा की विधि पर विचार किया है । अन्त में कायोत्सर्ग के दोष, फल आदि पर भी चिन्तन किया गया है।