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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४६३ सातों निह्नवों का परिचय नियुक्ति की भांति यहाँ भी दिया गया है और भाष्य की तरह आठवें निह्नव बोटिक का भी वर्णन किया है।
इसके पश्चात् सामायिक, उसके द्रव्य-पर्याय, नय दृष्टि से सामायिक, उसके भेद, उसका स्वामी, उसकी प्राप्ति का क्षेत्र, काल, दिशा, सामायिक करने वाला, उसकी प्राप्ति के हेतु, अपूर्व आनन्द, कामदेव का दृष्टान्त, अनुकम्पा, इन्द्रनाग, पुण्यशाल, शिवराजर्षि, गंगदत्त दशार्णभद्र, इलापूत्र, आदि के दृष्टान्त दिये गये हैं। सामायिक की स्थिति, सामायिक वालों की संख्या, सामायिक का अन्तर, सामायिक का आकर्ष, समभाव की महत्ता का प्रतिपादन करने के लिए दमदत्त एवं मैतार्य का दृष्टान्त दिया है। समास, संक्षेप और अनवद्य के लिए धर्मरुचि व प्रत्याख्यान के लिए तेतलीपूत्र का दृष्टान्त देकर विषय को स्पष्ट किया है।
. इसके पश्चात् सूत्रस्पशिक नियुक्ति की चूणि है। उसमें नमस्कार महामंत्र, निक्षेप दृष्टि से स्नेह, राग व द्वेष के लिए क्रमशः अरहन्नक, धर्मरुचि तथा जमदग्नि का उदाहरण दिया गया है । अरिहन्तों व सिद्धों को नमस्कार, औत्पातिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धि, कर्म, समुद्घात, योगनिरोध, सिद्धों का अपूर्व आनन्द, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार एवं उसके प्रयोजन पर प्रकाश डाला है। उसके बाद सामायिक के पाठ 'करेमि भन्ते' की व्याख्या करके छह प्रकार के करण का विस्तृत निरूपण किया है।
चतुर्विंशतिस्तव में स्तव, लोक, उद्योत, धर्म, तीर्थंकर आदि पदों पर निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया है। तृतीय वन्दना अध्ययन में वन्दन के योग्य श्रमण के स्वरूप का प्रतिपादन किया है और चितिकर्म, कृतिकर्म, पूजाकर्म, विनयकर्म को दृष्टान्त देकर समझाया गया है । अवंद्य को वन्दन करने का निषेध किया है।
चतुर्थ अध्ययन में प्रतिक्रमण की परिभाषा, प्रतिक्रमक, प्रतिक्रमण, और प्रतिक्रांतव्य इन तीन दृष्टियों से प्रतिक्रमण पर विवेचन किया है। प्रतिचरणा, परिहरणा, वारणा, निवृत्ति, निन्दा, गर्हा, शुद्धि और आलोचना पर विवेचन करते हुए उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। कायिक, वाचिक और मानसिक अतिचार, ईर्यापथिकी विराधना, प्रकामशय्या, भिक्षाचर्या, स्वाध्याय, आदि में लगने वाले अतिचार, चार विकथा, चार ध्यान, पाँच क्रिया, पाँच कामगुण, पांच महाव्रत, पांच समिति आदि का विविध