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४६२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा कथाओं की प्रचुरता है। यह चूणि अन्य चूणियों से विस्तृत है । ओघनियुक्तिचूणि, गोविन्दनियुक्ति, बसुदेवहिण्डि प्रभृति अनेक ग्रन्थों का उल्लेख इसमें हुआ है।
सर्वप्रथम मंगल की चर्चा करते हुए भावमंगल की दृष्टि से ज्ञान का विस्तार से निरूपण है। श्रुतज्ञान की दृष्टि से आवश्यक पर निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया है। द्रव्यावश्यक और भावावश्यक पर प्रकाश डाला है। श्रुत का प्ररूपण तीर्थंकर भगवान करते हैं। तीर्थकर कौन होते हैं ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान महावीर का जीव मिथ्यात्व से किस प्रकार मुक्त हुआ इसकी ओर संकेत करते हुए उनके पूर्वभवों की चर्चा की गई है। साथ ही भगवान महावीर का जीव मरीचि के भव में भगवान ऋषभदेव का पौत्र था अत: भगवान ऋषभदेव के भी पूर्वभवों का वर्णन किया गया है। उनका जन्म, विवाह, अपत्य का विस्तार से वर्णन कर उस समय के शिल्प, कर्म, लेख आदि पर भी प्रकाश डाला गया है। सम्राट् भरत की दिगविजय यात्रा का इतना सजीव चित्रण किया गया है कि पाठक पढ़तेपढ़ते झूमने लगता है। भरत का राज्याभिषेक, भरत व बाहुबली का युद्ध, बाहुबली को केवलज्ञान तथा ऋषभदेव के अन्य वर्णन के पश्चात् चक्रवर्ती तथा वासुदेव आदि का संक्षेप में परिचय देकर अन्य तीर्थंकरों के जीवन पर संक्षेप में चिन्तन किया है। भगवान महावीर के जीव मरीचि ने परीषहों को सहन न करने के कारण अपनी कमनीय कल्पना से नवीन मत की संस्थापना की।
भगवान महावीर का जीव अनेक भवों में परिभ्रमण करने के पश्चात् अन्त में महावीर बना। उनके जीवन से सम्बन्धित धर्मपरीक्षा, विवाह, अपत्य, दान, सम्बोध, लोकान्तिक देवों का आगमन, इन्द्र का आगमन, दीक्षामहोत्सव, उपसर्ग, इन्द्र-प्रार्थना, अभिग्रहपंचक, अच्छन्दकवृत्त, चण्डकौशिकवृत्त, गौशालकवृत्त, संगम के उपसर्ग, देवी का उपसर्ग, विहार, चन्दनबाला का प्रसंग, गोपालक के द्वारा शलाका का उपसर्ग, केवलज्ञान, समवसरण, गणधर दीक्षा, आदि तथा भगवान के शारीरिक सौन्दर्य का वर्णन भी साहित्यिक दृष्टि से किया गया है।
नयाधिकार में आर्य वज्रस्वामी व आर्य रक्षित का जीवन वृत्त दिया गया है । आर्य रक्षित का मातुल गोष्ठामाहिल सातवाँ निह्नव हुआ।