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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४६१ विशेषचूर्णि, दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि और बृहत्कल्पचूणि ये सभी चूर्णियां संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में रचित हैं; किन्तु संस्कृत कम और प्राकृत अधिक है।
____ आवश्यकचूणि, दशवकालिकचूर्णि (अगस्त्यसिंह) और जीतकल्पचूणि (सिद्धसेन) ये तीनों चूर्णियाँ प्राकृत भाषा में निर्मित हैं। चूणियों की भाषा सरल और सुबोध है। सांस्कृतिक, राजनीतिक व सामाजिक सामग्री इन चूणियों में भरी पड़ी है।
नन्दीचूर्णि यह चूणि मूलसूत्र का अनुसरण कर लिखी गई है। इसकी विवेचन शेली संक्षिप्त व सारग्राही है। यह मुख्य रूप से प्राकृत भाषा में है पर जहाँ-तहाँ संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। ज्ञान की चर्चा करते हुए केवलज्ञान और केवलदर्शन के सम्बन्ध में तीन मत दिये हैं-(१) केवलज्ञान और केवलदर्शन का योगपत्य, (२) केवलज्ञान और केवलदर्शन का क्रमिकत्व (३) केवलज्ञान और केवलदर्शन का अभेद। स्वयं चूर्णिकार ने केवलज्ञान और केवलदर्शन के क्रमभावित्व का समर्थन किया है। इस सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा विशेषावश्यक भाष्य में की गई है।
__ अनुयोगद्वारचूणि यह चूणि भी मूलानुसारी ही है। भाषा में संस्कृत शब्दों का प्रयोग बहुत ही कम हुआ है । प्राकृत भाषा का ही प्राधान्य है। यह चूणि नन्दीचूर्णि के पश्चात् रची गई है क्योंकि इसमें नन्दीचूणि का उल्लेख हुआ है और साथ ही आवश्यक, तन्दुलवैचारिक आदि का भी निर्देश किया गया है। इसमें आवश्यक पर विस्तार से प्रकाश डाला है। सप्त स्वर का संगीत की दृष्टि से गहराई से चिन्तन किया है। वीर, शृङ्गार, अद्भुत, रौद्र, ब्रीडनक, वीभत्स, हास्य, करुण और प्रशान्त इन नौ रसों का सोदाहरण निरूपण है। आत्मांगुल, उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल, कालप्रमाण, मनुष्यादि प्राणियों का प्रमाण, गर्भजादि मानवों की संख्या, आदि पर विवेचन किया है। चणि में कहीं पर भी लेखक के नाम का निर्देश नहीं हआ है।
आवश्यकचूणि यह चूणि नियुक्ति के अनुसार ही लिखी गई है। भाष्य गाथाओं का उपयोग भी यत्र-तत्र हुआ है। मुख्य रूप से भाषा प्राकृत है किन्तु संस्कृत के श्लोक, मध व उद्धरण के रूप में गद्य पंक्तियाँ भी उद्धृत की गई हैं । भाषा प्रवाहयुक्त है, शैली में लालित्य व ओज है। ऐतिहासिक