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४६० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा गणी महत्तर आया है पर स्वयं चूर्णिकार का नाम स्पष्ट रूप से नहीं आया है। विज्ञों का मन्तव्य है कि चूर्णिकार जिनदासगणी महत्तर भाष्यकार जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के पश्चात् और आचार्य हरिभद्र से पहले हुए हैं क्योंकि भाष्य की अनेक गाथाओं का उपयोग चूणियों में हुआ है और आचार्य हरिभद्र ने अपनी वृत्तियों में चूणियों का उपयोग किया है। आचार्य जिनदासगणी का समय विक्रम सं० ६५०-७५० के मध्य होना चाहिए। नन्दी चूणि के उपसंहार में उसका रचना समय शक संवत् ५६८ अर्थात् विक्रम सं० ७३३ है, उससे भी यही सिद्ध होता है।
जिनदासगणी महत्तर ने कितनी चूणियाँ लिखीं यह अभी तक पूर्ण रूप से निश्चित नहीं हो सका है तथापि परम्परा के अनुसार उनकी निम्नलिखित चूणियाँ मानी जाती हैं-(१) निशीथविशेषचूणि, (२) नन्दीचूणि, (३) अनुयोगद्वारचूणि, (४) आवश्यकचूर्णि, (५) दशवकालिकचूणि, (६) उत्तराध्ययनचूणि, (७) सूत्रकृताङ्गचूणि ।
जीतकल्पचूर्णि, जो इस समय प्राप्त है उसके रचयिता सिद्धसेन सूरि हैं, पर ये सिद्धसेन, सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न हैं। पं० दलसुख मालवणिया के अभिमतानुसार आचार्य जिनभद्र कृत बृहत्क्षेत्रसमास के वत्तिकार सिद्धसेन सूरि ही प्रस्तुत चूणि के कर्ता हैं।
बृहत्कल्पचूणि के रचयिता प्रलम्ब सूरि हैं। ये विक्रम संवत् १३३४ से पूर्व हुए हैं।
दशवकालिकसूत्र पर अगस्त्यसिंह स्थविर की चूणि भी प्राप्त है। जिसे आगमप्रभाकर पुण्यविजयजी महाराज ने सम्पादित कर प्रकाशित किया है। मुनिश्री के अभिमतानुसार चूर्णि का रचना काल विक्रम की तीसरी शताब्दी के आसपास है । अगस्त्यसिंह कोटिगणीय बञस्वामी की शाखा के एक स्थविर हैं। इनके गुरु का नाम ऋषिगुप्त है। अन्य चूर्णिकारों के नाम अभी तक ज्ञात नहीं हो सके हैं।
भाषा की दृष्टि से नन्दीचूर्णि, अनुयोगद्वारचूणि, दशवकालिकचूणि (जिनदास), उत्तराध्ययनचूणि, आचाराङ्गणि, सूत्रकृताङ्गचर्णि, निशीथ
१ गणधरवाद, प्रस्तावना, प.४४ २ जैन ग्रन्थावली-जैन श्वेताम्बर कान्फन्स बम्बई, वि० सं० १९६५, १० १२,
टिप्पण ५ ३ बृहत्कल्पभाष्य, माग-६, आमुख, पु०४