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४८६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा चौबीस, इकत्तीस और बत्तीस ग्रास ग्रहण करने वाला श्रमण क्रमशः अपार्धाहारी, अर्धाहारी, प्राप्तावमौदर्य, किञ्चिदवमौदर्य और प्रमाणाहारी है।
नवम उद्देशक में शय्यातर के ज्ञातिक, स्वजन, मित्र, प्रभृति आगन्तुक व्यक्तियों से सम्बन्धित आहार को लेने और न लेने के सम्बन्ध में विचार कर श्रमणों की विविध प्रतिमाओं पर प्रकाश डाला है।
दशम उद्देशक में यवमध्यप्रतिमा और वजमध्यप्रतिमा पर विशेषरूप से चिन्तन किया है। साथ ही पांच प्रकार के व्यवहार, बालदीक्षा की विषि, दस प्रकार की वैयावृत्य आदि विषयों की व्याख्या की गई है।
____ आर्य रक्षित, आर्य कालक, राजा सातवाहन, प्रद्योत, मुरुण्ड, चाणक्य, चिलातपुत्र, अवन्ति सुकुमाल, रोहिणेय, आर्य समुद्र, आर्य मंगु आदि की कथाएं आई हैं। प्रस्तुत भाष्य अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
ओघनियुक्ति-लघुभाष्य ओघनियुक्ति-लघुभाष्य के कर्ता का नाम विज्ञों को ज्ञात नहीं हो सका है । इस भाष्य में ३२२ गाथाएँ हैं । ओघ, पिण्ड, व्रत, श्रमणधर्म, संयम, वैयावृत्य, गुप्ति, तप, समिति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रियनिरोध, प्रतिलेखना, अभिग्रह, अनुयोग, कायोत्सर्ग, औपघातिक, उपकरण प्रभृति विषयों पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। इन्हीं विषयों पर बृहद्भाष्य में विस्तार से विवेचन है।
ओधनियुक्ति-भाष्य ओद्यनियुक्ति बृहदभाष्य की एक हस्तलिखित प्रति मुनिश्री पूण्यविजयजी के संग्रह में थी जो लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद में रखी गई है। इसमें २५१७ गाथाएँ हैं। इसमें भाष्य की गाथाओं के साथ नियुक्ति की गाथाएं भी मिल गई हैं। नियुक्ति की गाथाओं के विवेचन के रूप में भाष्य का निर्माण हुआ है । भाष्य में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कहीं पर भी भाष्यकार के नाम का उल्लेख नहीं हुआ है।
पिण्डनियुक्तिभाष्य पिण्डनियुक्तिभाष्य के रचयिता का नाम भी ज्ञात नहीं हो सका है। इसमें ४६ गाथाएँ हैं। 'गौण' शब्द की व्युत्पत्ति, पिण्ड का स्वरूप, लौकिक और सामयिक की तुलना, सद्भावस्थापना और असद्भाव