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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
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स्थापना के रूप में पिण्डस्थापना के दो भेद हैं । पिण्डनिक्षेप और वात काय, आषाकर्म का स्वरूप, अधः कर्मता हेतु विभागौद्देशक के भेद, मिश्रजात का स्वरूप, स्वस्थान के स्थान, भाजन स्वस्थान आदि भेद; सूक्ष्म प्राभृतिका के दो भेद - अपसर्पण और उत्सर्पण; विशोधि और अविशोधि की कोटियाँ; अदृश्य होने का चूर्ण और दो क्षुल्लक भिक्षुओं की कथाएँ आदि भी हैं।
उत्तराध्ययन भाष्य
उत्तराध्ययन भाष्य स्वतंत्र रूप से नहीं मिलता है । शान्ति सूरि की प्राकृत टीका में भाष्य की गाथाएँ मिलती हैं। कुल गाथाएँ ४५ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य भाष्यों की गाथाओं के समान इस भाष्य की गाथाएँ भी नियुक्ति के साथ मिल गई हैं। प्रस्तुत भाष्य में बोटिक की उत्पत्ति, पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक आदि निर्ग्रन्थों के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है ।
araकालिकभाष्य
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माना है वे गाथाएँ चूर्णि में भी हैं। चूर्णिकार से पूर्ववर्ती हैं। इसमें हेतु, उत्तरगुणों का प्रतिपादन किया संसिद्धि की गई है।
में कुल ६३ गाथाएँ हैं। हारिभद्रीया वृत्ति में इस बात का उल्लेख हुआ है । जिन गाथाओं को हरिभद्र ने भाष्यगत इससे यह स्पष्ट होता है कि भाष्यकार विशुद्धि, प्रत्यक्ष-परोक्ष एवं मूलगुण व गया है। अनेक प्रमाण देकर जीव की
इस प्रकार आवश्यक, जीतकल्प, बृहत्कल्प, पञ्चकल्प, निशीथ, व्यवहार, ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि पर भाष्य प्राप्त होते हैं । इन पर संक्षेप में चिन्तन किया गया है। इनमें से विशेषावश्यकभाष्य, जीतकल्पभाष्य, वृहद्लघुभाष्य, व्यवहारभाष्य, ओ नियुक्तिलघुभाष्य, पिण्डनियुक्तिभाष्य, निशीथभाष्य ये प्रकाशित हो गये हैं । कुछ भाष्य अभी तक अप्रकाशित हैं। भाष्य साहित्य में भारतीय संस्कृति, सभ्यता, धर्म और दर्शन व मनोविज्ञान का जो सहज रूप से विश्लेषण हुआ है वह बहुत ही अपूर्व और अनूठा है ।
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