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थाहा
४८२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा , १६ चेदि
..शौक्तिकावती २० सिंधु सौवीर
वीतिभय २१ शूरसेन
मथुरा २२ भंगि
पापा २३ वट्ट
मासपुरी .२४ कुणाल
श्रावस्ती . २५ लाट
कोटिवर्ष २५३ केकया
श्वेताम्बिका . क्षेत्रकल्प के पश्चात् कालकल्प का वर्णन करते हुए मासकल्प, पर्युषणाकल्प, वृद्धवासकल्प, पर्यायकल्प, उत्सर्ग, प्रतिक्रमण, कृतिकर्म, प्रतिलेखन, स्वाध्याय, ध्यान, भिक्षा, भक्त, विकार, निष्क्रमण और प्रवेश पर चिन्तन किया गया है। भावकल्प में दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, संयम, समिति, गुप्ति प्रभृति का विवेचन किया गया है।
द्वितीय कल्प के सात भेद हैं-स्थितकल्प, अस्थितकल्प, जिनकल्प, स्थविरकल्प, लिंगकल्प, उपधिकल्प और सम्भोगकल्प ।
तृतीय कल्प के दस भेद हैं ---कल्प, प्रकल्प, विकल्प, संकल्प, उपकल्प, अनुकल्प, उत्कल्प, अकल्प, दुष्कल्प और सुकल्प ।
चतुर्थ कल्प के बीस भेद हैं-नामकल्प, स्थापनाकल्प, द्रव्यकल्प, क्षेत्रकल्प, कालकल्प, दर्शनकल्प, श्रुतकल्प, अध्ययनकल्प, चारित्रकल्प, आदि ।
पञ्चमकल्प के द्रव्य, भाव, तदुभयकरण, विरमण, सदाधार, निर्वेश, अन्तर, नयान्तर, स्थित, अस्थित, स्थान, आदि बयालीस भेद हैं।
इस प्रकार पांच कल्पों का वर्णन प्रस्तुत भाष्य में हुआ है। इसमें पंचकल्पलघुभाष्य का भी समावेश हो गया है। अन्त में भाष्यकार संघदासगणी के नाम का उल्लेख भी हुआ है।
निशीथभाष्य निशीथभाष्य के रचयिता भी संघदासगणी माने जाते हैं। इस भाष्य की अनेक गाथाएँ बृहत्कल्पभाष्य और व्यवहारभाष्य में प्राप्त होती हैं। भाष्य में अनेक रसप्रद सरस कथाएँ भी हैं। श्रमणाचार का विविध दृष्टियों से निरूपण हुआ है। जैसे पुलिंद आदि अनार्य अरण्य में जाते हए श्रमणों को आर्य समझ कर मार देते थे। सार्थवाह व्यापारार्थ दूर-दूर देशों