SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ अंग आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४८१ प्रस्तुत भाष्य में पांच प्रकार के कल्प का संक्षिप्त वर्णन है, फिर उसके छह, सात, दस, बीस और बयालीस भेद किये गये हैं। पहला कल्प मनुजजीवकल्प छह प्रकार का है-प्रवाजन, मुण्डन, शिक्षण, उपस्थापन, भोग और संवसन । जाति, कुल, रूप और विनय सम्पन्न व्यक्ति ही प्रव्रज्या के योग्य है। बाल, वृद्ध, नपुंसक, जड़, क्लीव, रोगी, स्तेन, राजापकारी, उन्मत्त, अदर्शी, दास, दुष्ट, मूढ़, अज्ञानी, जुंगित, भयभीत, पलायित, निष्कासित, गभिणी, बालवत्सा स्त्री-ये बीस प्रकार के व्यक्ति प्रव्रज्या के लिए अयोग्य माने गये हैं। क्षेत्रकल्प को चर्चा करते हए साढ़े पच्चीस देशों को आर्य कहा है जिनमें श्रमण आनन्दपूर्वक विचरण कर सकता है। उन जनपदों और राजधानियों के नाम इस प्रकार हैंदेश राजधानी १ मगध राजगृह चम्पा ३ बंग ताम्रलिप्ति ४ कलिंग कांचनपुर ५ काशी वाराणसी ६ कोशल साकेत गजपुर . ८ कुशावर्त सौरिक ९ पांचाल काम्पिल्य १० जांगल अहिच्छत्रा ११ सौराष्ट्र द्वारवती १२ विदेह मिथिला १३ वत्स कौशाम्बी १४ शांडिल्य १५ मलय भद्दिलपुर १६ मत्स्य वैराटपुर १७ वरण अच्छापुरी १८ दशार्ण मृत्तिकावली नन्दिपुर १ वही भाष्य गा० ६६६-६७४
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy