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________________ ४७२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा प्रायश्चित्त का महत्त्व प्रतिपादन करने के पश्चात् आलोचना, प्रतिक्रमण आदि दस प्रायश्चित्तों का निरूपण किया है और उनके अपराधस्थानों पर भी प्रकाश डाला है। आलोचना छद्मस्थ के लिए है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार प्रकार के कर्मों के बन्धन से जब तक आत्मा मुक्त नहीं होता तब तक वह छद्मस्थ कहलाता है। प्रतिक्रमण के अपराधस्थानों का वर्णन करते हुए जिनदास अर्हन्त्रक, नन्दिवर्धन और धर्मरुचि आदि के उदाहरण दिये गये हैं। मिथ प्रायश्चित्त में आलोचना और प्रतिक्रमण इन दोनों के संयुक्त अपराध-स्थानों का विवेचन किया है। संभ्रम, भय, आपत्, सहसा, अनाभोग आदि मिश्र कोटि के अपराध हैं। पिण्ड, उपधि, शय्या, कृतयोगी, कालातीत, अध्वातीत आदि विवेक-प्रायश्चित्त के अपराध-स्थान है। गमन, आगमन, विहार, श्रुत, सावद्यस्वप्न, नाव, नदी, सन्तार आदि व्युत्सर्ग के अपराधस्थान हैं। ज्ञान के आठ, दर्शन के आठ, चारित्र में उद्गगम के सोलह, उत्पादना के सोलह, ग्रहणेषणा के दस, ग्रासैषणा के पाँच अतिचारों (अपराधस्थानों) पर प्रकाश डाला है। ये तप के अपराध-स्थान हैं। क्रोध के लिए क्षपक का, मान के लिए क्षुल्लक का, माया के लिए आषाढभूति का, लोभ के लिए सिंह केसर नामक मोदक की इच्छा रखने वाले क्षपक का, विद्या के लिए बौद्ध उपासक का, मंत्र के लिए पादलिप्त और मुरुण्डराज का, चूर्ण के लिए दो भिक्षुओं और योग के लिए ब्रह्मद्वैपिक तापसों के उदाहरण दिये गये हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से तपोदान के स्वरूप पर भी चिन्तन किया है। ...., कल्पस्थितिसामायिक, छेद, निविंशमान, निविष्ट, जिनकल्प और स्थविरकल्प ये छह प्रकार की है। कल्प के दस प्रकार ये हैं--(१) आचेलक्य, (२) औद्देशिक, (३) शय्यातर (४) राजपिण्ड, (५) कृतिकर्म, (६) व्रत, (७) ज्येष्ठ, (८) प्रतिक्रमण, (९) मास, (१०) पर्युषणा। भाष्यकार ने इन कल्पों पर गंभीरता से प्रकाश डाला है। साथ ही परिहारकल्प, जिनकल्प और स्थविरकल्प के स्वरूप पर भी चिन्तन किया गया है। साथ ही तपविधि का भी विस्तार से वर्णन किया है। छेद प्रायश्चित्त के अपराध-स्थानों पर प्रकाश डालते हुए उत्कृष्ट तपोभूमि का निर्देश किया है। आदिजिन की उत्कृष्ट तपोभूमि एक वर्ष की
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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