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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४६६ विशेषावश्यकभाष्य का भाष्य साहित्य में अनूठा स्थान है। आचार्य की प्रबल तार्किक शक्ति, अभिव्यक्ति कुशलता, प्रतिपादन की पटुता, विवेचन की विशिष्टता सहज रूप से देखी जा सकती है। जीतकल्पभाष्य जीतकल्पभाष्य के रचयिता भी जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण हैं । प्रस्तुत भाष्य में वृहत्कल्प - लघुभाष्य, व्यवहारभाष्य, पञ्चकल्पमहाभाष्य, पिण्डनियुक्ति प्रभृति अनेक ग्रन्थों से गाथाएं उद्धृत की गई हैं। अतः यह एक संग्रह ग्रन्थ है। मूल जीतकल्प में १०३ गाथाएँ हैं और इस स्वोपज्ञ भाष्य में २६०६ गाथाएँ हैं । इसमें जीतव्यवहारा के आधार पर जो प्रायश्चित्त दिये जाते हैं उनका संक्षेप में वर्णन है । चारित्र में जो स्खलनाएं हो जाती हैं उनकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का विधान है। प्रायश्चित्त एक प्रकार से चिकित्सा है। रोगी को कष्ट देने के लिए चिकित्सा नहीं की जाती अपितु रोग निवारण के लिए की जाती है, इसी प्रकार प्रायश्चित्त भी राग आदि अपराधों के उपशमन के लिए दिया जाता है । प्रायश्चित्त के दस प्रकार हैं । प्रायश्चित्त के प्राकृत में 'पायच्छित्त' और 'पच्छित्त' ये दो रूप मिलते हैं। जो पाप का छेद करता है वह 'पाय'च्छित्त' है और उससे चित्त शुद्ध होता है वह 'पच्छित' है । संघ व्यवस्था की दृष्टि से एक आचारसंहिता का निर्माण किया गया। जिसमें श्रमण के कर्तव्य, अकर्तव्य, प्रवृत्ति और निवृत्ति का निर्देश है। वह आचारसंहिता व्यवहार कहलाती है । जिन व्यक्तियों के द्वारा वे व्यवहार संचालित होते हैं वे भी कार्यकारण की अभेद दृष्टि से व्यवहार कहलाते हैं । ज्ञानात्मक क्षमता के आधार पर व्यवहार संचालन में उन व्यक्तियों को प्राथमिकता दी गई है। व्यवहार मंचालन में प्रथम स्थान आगमपुरुष का है, उसके अभाव में व्यवहार का प्रवर्तन श्रुतपुरुष करता है। उसकी अनुपस्थिति में आज्ञापुरुष, उसकी अनुपस्थिति में धारणा पुरुष और उसकी अनुपस्थिति में जीतपुरुष व्यवहार का वर्तन करता है । आगम व्यवहार के दो प्रकार - प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष के तीन प्रकार हैं- ( १ ) अवधिप्रत्यक्ष, (२) मनः पर्यव प्रत्यक्ष और (३) केवलज्ञान प्रत्यक्ष । परोक्ष के तीन प्रकार हैं- (१) चतुर्दश पूर्वधर, (२) दशपूर्वधर (३) नौ पूर्वधर ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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