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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४६१ सहमत नहीं हैं। उनका यह स्पष्ट मन्तव्य है कि उपर्युक्त गाथाओं में रचना के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं है। यदि हम खण्डित अक्षरों को किसी मन्दिर विशेष का नाम मानलें तो इन गाथाओं में कोई भी क्रियापद नहीं रहता है अतः निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि इसकी रचना शक सं० ५३१ में ही हुई। यह अधिक संभव है कि उस समय यह प्रति लिखकर किसी मन्दिर को भेंट की गई हो, क्योंकि ये गाथाएँ जैसलमेर की प्रति के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्राचीन प्रति में उपलब्ध नहीं है । यदि ये गाथाएं मूल भाष्य की होतीं तो अन्य सभी प्रतियों में होनी चाहिए थीं । यदि इन गाथाओं को रचनाकाल सूचक मानें तो यह भी मानना चाहिए कि इनकी रचना जिनभद्र ने की। यदि जिनभद्र ने की है तो इनकी टीकाएं भी मिलनी चाहिए । कोट्याचार्य और मलधारी हेमचन्द्र की विशेषावश्यक की टीकाओं में इन गाथाओं पर कोई टीका नहीं है और न उन टीका ग्रन्थों में ये गाथाएँ ही हैं। अतः यह स्पष्ट है कि इन गाथाओं में जो समय बताया गया है वह रचना का नहीं अपितु प्रति के लेखन का है 12 विशेषावश्यक की जैसलमेर की प्रति के आधार से उसका लेखन शक संवत् ५३१ अर्थात् विक्रम सं ६६६ है तो इसका रचना समय इससे पहले का होना चाहिए। विशेषावश्यकभाष्य आचार्य जिनभद्र की अन्तिम रचना है। उन्होंने इस पर स्वोपज्ञ वृत्ति भी लिखना प्रारम्भ किया था किन्तु पूर्ण होने के पहले ही उनका आयुष्य पूर्ण हो गया जिससे वह अपूर्ण ही रह गई। इस प्रकार जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का उत्तरकाल विक्रम सं० ६५०-६६० के आस-पास होना चाहिए। आचार्य जिनभद्र की निम्न ६ रचनाएँ प्राप्त होती हैं (१) विशेषावश्यकभाष्य - प्राकृत पद्य में (२) विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति-अपूर्ण संस्कृत गद्य (३) बृहत्संग्रहणी -- प्राकृत पद्य (४) बृहत्क्षेत्र समास - प्राकृत पद्य (५) विशेषणवती - प्राकृत पद्य (६) जीतकल्प-प्राकृत पद्य १ गणधरवाद, प्रस्तावना, पृ० ३२-३३ २ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, पू० १३५
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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