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________________ ४५४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा संसक्तनियुक्ति यह नियुक्ति किस आगम पर लिखी गई है, इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। कितने ही विद्वान इसे भद्र बाह की रचना मानते हैं, तो कितने ही विद्वानों का यह मानना है कि भद्रबाहु के बाद में हुए किसी आचार्य की रचना है। चौरासी आगमों में इसका उल्लेख है। __ निशीथनियुक्ति इसमें सूत्र-गत शब्दों की व्याख्या निक्षेप पद्धति से की गई है। यह नियक्ति भी भाष्य में मिल गई है। जहां पर चूर्णिकार संकेत करते हैं वहीं पर यह पता चलता है कि यह नियुक्ति की गाथा है और यह भाष्य की गाथा है। इसमें भी मुख्य रूप से श्रमणाचार का ही निरूपण हुआ है। गोविन्दनियुक्ति प्रस्तुत नियुक्ति को दर्शनशास्त्र भी कहा जाता है। इससे यह ज्ञात होता है कि दर्शन सम्बन्धी तथ्यों पर प्रकाश डाला गया होगा। आचार्य गोविन्द ने एकेन्द्रिय जीवों की संसिद्धि के लिए इसका निर्माण किया था। यह किसी एक आगम पर न होकर सर्वतन्त्र स्वतन्त्र रचना है। बृहत्कल्पभाष्य, आवश्यकचूणि व निशीथचूर्णि में इसका उल्लेख मिलता है, पर यह नियुक्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। आराधना नियुक्ति यह नियुक्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। चौरासी आगमों में 'आराधनापताका' नाम का एक आगम है। सम्भव है यह नियुक्ति उसी पर हो । मूलाचार में वट्टकेर ने इस नियुक्ति का उल्लेख किया है। ऋषिभाषित चौरासी आगमों में ऋषिभाषित का भी नाम है। प्रत्येकबुद्धों द्वारा भाषित होने से यह ऋषिभाषित के नाम से विश्रुत है। इस पर भी भद्रबाहु ने नियुक्ति लिखी थी, पर वह वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। सूर्यप्रज्ञप्ति-नियुक्ति यह नियुक्ति भी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है पर आचार्य मलयगिरि की वृत्ति में इसका नाम निर्देश हुआ है। इसमें सूर्य की गति आदि तथा ज्योतिषशास्त्र सम्बन्धी तथ्यों का बहुत ही सुन्दर निरूपण हुआ है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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