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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४५३ है। अनुयोग पर नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, वचन और भाव इन सात निक्षेपों से चिन्तन किया है। जो पश्चाद्भूत योग है वह अनुयोग है अथवा जो स्तोक रूप योग है वह अनुयोग है। कल्प के उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय ये चार अनुयोगद्वार हैं। कल्प और व्यवहार का अध्ययन चिन्तन करने वाला मेधावी सन्त बहुश्रुत, चिरप्रवजित, कल्पिक, अचंचल, अवस्थित, अपरिश्रावी, विज्ञ, प्राप्तानुज्ञात और भावपरिणामक होता है। इसमें ताल-प्रलम्ब का विस्तार से वर्णन है और उसके ग्रहण करने पर प्रायश्चित्त का भी विधान है। ग्राम, नगर, खेड, कर्बटक, मडम्ब, पत्तन, आकर, द्रोणमुख, निगम, राजधानी, आश्रम, निवेश, संबाध, घोष, अंशिका आदि पदों पर भी निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया है। जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक पर भी प्रकाश डाला है। आर्य पद पर विचार करते हुए नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, भाषा, शिल्प, ज्ञान, दर्शन, चारित्र-इन बारह निक्षेपों से चिन्तन किया है। आर्य क्षेत्र में विचरण करने से ज्ञान, दर्शन और चारित्र की अभिवृद्धि होती है। अनार्य क्षेत्रों में विचरण करने से अनेक दोषों के लगने की संभावना रहती है। स्कन्दकाचार्य के दृष्टांत को देकर इस तथ्य को स्पष्ट किया गया है। साथ ही ज्ञानदर्शनचारित्र की वृद्धि हेतु अनार्य क्षेत्र में विचरण करने का आदेश दिया है और उसके लिए राजा सम्प्रति का दृष्टान्त भी दिया गया है। श्रमण और श्रमणियों के आचार-विचार, आहार-विहार का संक्षेप में बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है। सर्वत्र निक्षेप-पद्धति से व्याख्यान किया गया है। यह नियुक्ति स्वतन्त्र न रहकर बृहत्कल्पभाष्य में मिश्रित हो गई है। व्यवहारनियुक्ति बृहत्कल्प में श्रमण-जीवन की साधना का जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किया गया-उत्सर्ग और अपवाद का जो विवेचन किया गया है, उन्हीं विषयों पर व्यवहारनियुक्ति में भी चिन्तन किया गया है। कल्प और व्यवहार का निए क्ति परस्पर शैली, भाव और भाषा की दृष्टि से बहुत कुछ मिलतीजूलती हैं। दोनों में साधना के तथ्य व सिद्धान्त प्रायः समान हैं। यह नियुक्ति भी भाष्य में विलीन हो चुकी है। 'काहा
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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