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________________ ४५० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा प्रत्यंग का छेदन करने से उसे अपार वेदना होती है उसी प्रकार पृथ्वीकाय के जीवों का छेदन-भेदन करने से उन्हें भी वेदना होती है । बध कृत, कारित और अनुमोदित रूप से तीन प्रकार का है। श्रमण न स्वयं हिंसा करता है, न करवाता है और न अनुमोदन ही करता है। इसी प्रकार अपकाय, तेजस्काय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय और वायुकाय के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। द्वितीय अध्ययन का नाम लोकविजय है। लोक और विजय ये दो पद हैं। लोक का आठ प्रकार के निक्षेप से और विजय का छह प्रकार के निक्षेप से विचार किया है। भावलोक का अर्थ कषाय है। कषायविजय ही लोकविजय है। तृतीय अध्ययन शीतोष्णीय है। शीत और उष्ण पदों का नाम आदि निक्षेपों से चिन्तन किया है। स्त्री परीषह और सत्कार परीषह ये दो परीषह शीत हैं शेष बीस उष्ण परीषह हैं। इसमें भावसुप्त के दोषों पर चिन्तन कर उसके दु:खों पर विचार किया है। केवल दुःख सहने से कोई भी श्रमण नहीं बन सकता, श्रमण की क्रिया करने से ही श्रमण बनता है। संयम की साधना से ही कर्मक्षय होकर मुक्ति प्राप्त होती है। चतुर्थ अध्ययन में सम्यक्त्व का निरूपण है। चार उद्देशकों में क्रमशः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्तप और सम्यकचारित्र का विश्लेषण किया गया है । दर्शन और चारित्र के औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन भेद हैं । ज्ञान के क्षायोपशमिक और क्षायिक ये दो भेद हैं। पञ्चम अध्ययन में 'लोकसार' का वर्णन है। 'लोक' और 'सार' शब्द पर भी निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया है। सम्पूर्ण लोक का सार धर्म है, धर्म का सार ज्ञान है, ज्ञान का सार संयम है और संयम का सार निर्वाण है। ___षष्ठम अध्ययन का नाम धूत ह । वस्त्र आदि का प्रक्षालन द्रव्यधूत है और आठ प्रकार के कर्मों को क्षय करना भावधूत है। सप्तम अध्ययन में महापरिज्ञा का निरूपण है और अष्टम अध्ययन में विमोक्ष का वर्णन है। विमोक्ष का नाम आदि छह प्रकार के निक्षेपों से चिन्तन किया है। भावविमोक्ष देशविमोक्ष और सर्वविमोक्ष रूप से दो प्रकार का है । श्रमण देशविमुक्त होता है और सिद्ध सर्वविमुक्त हैं।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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