________________
आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४४१ अनुयोग, नियोग, भाष्य, विभाषा और वार्तिक ये पर्यायवाची हैं किन्तु भाषा, विभाषा और वार्तिक का भेद स्पष्ट किया गया है। उसके पश्चात् सामायिक पर विवेचन उद्देश्य, निर्देश, निर्गम आदि छब्बीस बातों के द्वारा किया गया है।
मिथ्यात्व का निर्गमन किस प्रकार किया जाता है इस प्रश्न पर चिन्तन करते हुए भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन किया है। उसमें कुलकर की चर्चा, भगवान ऋषभदेव और उनके जीवन पर प्रकाश डाला है। भगवान ऋषभ का जीवन विस्तार से यहाँ पर उट्टङ्कित किया गया है। भगवान महावीर के जीव मरीचि ने परीषहों से घबराकर त्रिदण्डी मत की संस्थापना की। कुल मद से उस समय उनके जीव ने नीच गोत्र का उपार्जन किया और उत्सूत्र की प्ररूपणा करने के कारण उसे कोटाकोटि सागरोपम तक संसार में भटकना पड़ा। उन सभी भवों का वर्णन भी किया गया है। अन्त में मरीचि का जीव भगवान महावीर बना। उनके जीवन से सम्बन्धित स्वप्न, गर्भापहार, अभिग्रह, जन्म, अभिषेक, वृद्धि, जातिस्मरणज्ञान, भयोपाटन, विवाह, अपत्यदान, सम्बोध और महाभिनिष्क्रमण आदि तेरह घटनाओं का वर्णन है। केवलज्ञान होने के पश्चात् ग्यारह गणधरों के मस्तिष्क में जीव का अस्तित्व, कर्म का अस्तित्व, जीव और शरीर का अभेद, भूतों का अस्तित्व, इहभव-परभवसादृश्य, बंध-मोक्ष, देवों का अस्तित्व, नरक का अस्तित्व, पुण्य-पाप, परलोक की सत्ता, निर्वाणसिद्धि आदि शंकाएं थीं। भगवान महावीर ने उनकी शंकाएं निरसन की और उन सभी ने अपने शिष्यों के साथ भगवान महावीर के पास दीक्षाएँ ग्रहण की। भगवान महावीर ने सामायिक का उपदेश दिया। गणधरों ने उस उपदेश को सुना और उस पर श्रद्धा की। नयद्वार में सप्त नय पर चिन्तन करते हुए लिखा है कि जिनशासन में एक भी ऐसा सूत्र नहीं है जिसका अर्थ नयदृष्टि से न हो। इस समय कालिक सूत्र में नयावतारणा नहीं होती है-इस प्रश्न का समाधान करते हुए लिखा है कि पहले कालिक का अनुयोग अपृथक था पर आर्य वज्र के पश्चात् कालिक का अनुयोग पृथक कर दिया गया। आर्य बज के जीवन प्रसंग को देकर अनुयोगों के पृथक्कर्ता आर्यरक्षित के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। आर्य रक्षित का मातुल गोष्ठामाहिल सातवाँ निह्नव था। उसके पूर्व भगवान महावीर के शासन में जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ, अश्वमित्र, गंगसूरि, षडुलूक, ये छह निह्नव हो चुके थे। जिन्होंने क्रमश: