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१५ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
दिगम्बर साहित्य में इन चार अनुयोगों का वर्णन कुछ रूपान्तर से मिलता है। उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) प्रथमानुयोग, (२) करणानुयोग, (३) चरणानुयोग, (४) द्रव्यानुयोग।
प्रथमानुयोग में महापुरुषों का जीवन-चरित है। करणानुयोग में लोकालोकविभक्ति, काल, गणित आदि का वर्णन है। चरणानुयोग में आचार का निरूपण है और द्रव्यानुयोग में द्रव्य, गुण, पर्याय, तत्त्व आदि का विश्लेषण है।
दिगम्बर परम्परा आगमों को लुप्त मानती है अतएव प्रथमानुयोग में महापुराण और अन्य पुराण, करणानुयोग में त्रिलोक-प्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार, चरणानुयोग में मूलाचार और द्रव्यानुयोग में प्रवचनसार, गोम्मटसार आदि का समावेश किया गया है।'
श्रीमद् राजचन्द्र ने चारों अनुयोगों का आध्यात्मिक उपयोग बताते हए लिखा है-'यदि मन शंकाशील हो गया है तो द्रव्यानुयोग का चिन्तन करना चाहिये, प्रमाद में पड़ गया है तो चरण-करणानुयोग का, कषाय से अभिभूत है तो धर्मकथानुयोग का और जड़ता प्राप्त कर रहा है तो गणितानुयोग का।' - अनुयोगों की तुलना वैदिक साधना के विभिन्न पक्षों के साथ की जाय तो द्रव्यानुयोग का सम्बन्ध ज्ञानयोग से है, चरण-करणानुयोग का कर्मयोग से, धर्मकथानुयोग का भक्तियोग से। गणितानुयोग मन को एकाग्र करने की प्रणाली होने से राजयोग से मिलता है।
१ प्रथमानुयोगमाख्यानं चरितं पुराणमविपुण्यम् ।
बोधिसमाधिनिधानं बोधति बोधः समीचीनः ॥४३॥ लोकालोकविभक्तेयुगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनाञ्च । आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगञ्च ॥४४॥ गृहमध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धि रक्षांगम् । चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति ॥४५॥ जीवाजीवसुतत्त्वे पुण्यापुण्ये च बंधमोक्षौ च । द्रव्यानुयोगदीप:
श्रुतविद्यालोकमातनुते ॥४६॥ -रत्नकरण्ड श्रावकाचार, अधिकार १, पृ०७१ से ७३