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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
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आचार्य मलयगिरि का प्रस्तुत तर्क अधिक वजनदार नहीं है कि नमस्कार न करने के कारण ही यह नियुक्ति दशवकालिक का एक अंश है। पर ऐतिहासिक दृष्टि से चिन्तन करने पर ऐसा परिज्ञात होता है कि नमस्कार करने की परम्परा बहुत प्राचीन नहीं है। छेदसूत्र और मूलसूत्रों का प्रारम्भ भी नमस्कारपूर्वक नहीं हुआ है। टीकाकारों ने खींचातान कर आदि, मध्य और अन्त मंगल की संयोजना की। मंगल वाक्यों की परम्परा विक्रम की तीसरी शती के पश्चात् की है। विषय की दृष्टि से दोनों में समानता है किन्तु पिण्डनियुक्ति भद्रबाहु की रचना है यह उल्लेख आचार्य मलयगिरि के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं पर भी नहीं मिलता।
सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान "विन्टरनित्स" का मन्तव्य है कि ओधनियुक्ति जिस पर द्रोणाचार्य की टीका है वह प्रथम भद्रबाहु की कृति है पर नियुक्ति की प्रथम गाथा में ही 'दशपूर्वधर' को नमस्कार किया गया है। स्वयं टीकाकार ने भी यह प्रश्न उपस्थित किया है कि चतुर्दश पूर्वधर आचार्य दशपूर्वधर को क्यों नमस्कार करते हैं ? पुनः उन्होंने ही स्वयं समाधान किया कि 'गुणाहिए वंदयणं" पर यह समाधान तर्कसंगत नहीं है। अन्तिम दशपूर्वधर वज्र स्वामी थे। द्वितीय भद्रबाहु उनके पश्चात् हुए। अत: उनके द्वारा दशपूर्वधरों को नमस्कार करना संगत है।
संसक्तनियुक्ति इन नियुक्तियों के बहुत समय पश्चात् लिखी गई है। गोविन्दनियुक्ति जिसके रचयिता गोविन्दाचार्य माने जाते हैं यह नियुक्ति भी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
आवश्यकनियुक्ति । भद्रबाहु की दस नियुक्तियों में आवश्यकनियुक्ति का स्थान प्रथम है। इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इसके बाद की नियुक्तियों में उन विषयों की चर्चा न कर आवश्यक नियुक्ति को देखने का संकेत किया गया है। अन्य नियुक्तियों को समझने के लिए सर्वप्रथम इस नियुक्ति को समझना आवश्यक है।
इसमें सर्वप्रथम उपोद्घात है जो भूमिका के रूप में है। उसमें ८८० गाथाएँ हैं। प्रथम पाँच ज्ञानों का निरूपण है। आभिनिबोधिक ज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा-ये चार भेद हैं। अवग्रह का काल एक
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Winternitz-op. cit. p.465