SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा ऐसा मन्तव्य है कि भद्रबाहुसंहिता जो वर्तमान में उपलब्ध है वह कृत्रिम है। असली भद्रबाहुसंहिता वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। नियुक्तिकार भद्रबाहु का समय विक्रम सम्वत् ५६२ के लगभग है और नियुक्तियों का रचना समय विक्रम संवत् ५००-६०० के मध्य का है। इन दस आगमों पर नियुक्तियां प्राप्त होती हैं(१) आवश्यक, (२) दशवकालिक (३) उत्तराध्ययन (४) आचारांग (५) सूत्रकृताङ्ग (६) दशाश्रुतस्कन्ध (७) बृहत्कल्प (८) व्यवहार (6) सूर्यप्रज्ञप्ति (१०) ऋषिभाषित इन दस नियुक्तियों में से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित की नियुक्तियाँ उपलब्ध नहीं हैं। ओधनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, पञ्चकल्पनियुक्ति और निशीथनियुक्ति क्रमशः आवश्यकनियुक्ति, दशवकालिकनियंक्ति, बृहत्कल्पनियुक्ति और आचारांगनियुक्ति की पूरक हैं। डा० घाटके के अनुसार 'ओधनियुक्ति' और पिण्डनियुक्ति क्रमशः दशवकालिकनियुक्ति और आवश्यकनियुक्ति की उपशाखाएं हैं किन्तु इस बात से आचार्य मलयगिरि सहमत नहीं है। उनके विचार से पिण्डनियुक्ति दशवकालिकनियुक्ति का ही एक अंश है, ऐसा पिण्डनियुक्ति की टीका से स्पष्ट है। आचार्य मलयगिरि दशवकालिकनियुक्ति को चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु की कृति मानते हैं। किन्तु पिण्डैषणा नामक पाँचवें अध्ययन पर बहुत विस्तृत नियुक्ति हो जाने से उसको पृथक् व स्वतन्त्र 'पिण्डनियंक्ति यह नाम दिया गया। इससे यह सिद्ध होता है कि पिण्डनियक्ति दशवकालिकनियुक्ति का ही एक विस्तार से लिखा गया अंश है। मलयगिरि ने लिखा है-'पिण्डनियुक्ति दशवकालिकनियुक्ति के अन्तर्गत होने के कारण ही इस ग्रन्थ के आदि में नमस्कार नहीं किया गया है और दशवकालिकनियुक्ति के मूल के आदि में नियुक्तिकार ने नमस्कार पूर्वक ग्रन्थ को प्रारम्भ किया है।" १ दशवकालिकस्य च नियुक्तिश्चतुर्दशपूर्वविदा भद्रबाहुस्वामिना कृता, तत्र पिण्डेषणा मिधापञ्चमाध्ययन नियुक्तिरति-प्रभूतग्रन्थत्वात् पृथक् शास्त्रान्तरमिव व्यवस्थापिता तस्याश्च पिण्डनियुक्तिरिति नामकृतं ""अतएव चादावत्र नमस्कारोऽपि न कृतोदशकालिकानियुक्त्यन्तरगतत्वेन शेषा तु नियुक्तिर्दशवैकालिक-नियुक्तिरिति स्थापिता।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy