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________________ ४३६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा प्रयोजन है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो सूत्र और अर्थ का निश्चित सम्बन्ध बतलाने वाली व्याख्या को नियुक्ति कहते हैं । अथवा निश्चय से अर्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति को नियुक्ति कहते हैं । सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान शारपेन्टियर ने नियुक्ति की परिभाषा करते हुए लिखा है कि 'नियुक्तियाँ अपने प्रधान भाग के केवल इंडेक्स का काम करती हैं। वे सभी विस्तार युक्त घटनावलियों का संक्षेप में उल्लेख करती हैं । ४ अनुयोगद्वारसूत्र में नियुक्तियों के तीन प्रकार बताये गये हैं (१) निक्षेप - नियुक्ति (२) उपोद्घात-निर्युक्ति (३) सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति ये तीनों भेद विषय की व्याख्या पर आधृत हैं । डा० घाटके' ने नियुक्तियों को निम्न तीन विभागों में विभक्त किया है (१) मूल नियुक्तियाँ - जिसमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण न हुआ हो, जैसे आचारांग और सूत्रकृताङ्ग की नियुक्तियाँ । (२) जिसमें मूलभाष्यों का संमिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवच्छेद्य हैं, जैसे दशवकालिक और आवश्यकसूत्र की नियुक्तियाँ । (३) वे नियुक्तियाँ जिन्हें आजकल भाष्य या बृहदुभाष्य कहते हैं । . जिनमें मूल और भाष्य में इतना संमिश्रण हो गया है कि उन दोनों को पृथक्पृथक नहीं कर सकते, जैसे निशीथ आदि की नियुक्तियाँ । यह विभाग वर्तमान में प्राप्त नियुक्ति साहित्य के आधार पर किया गया है । इनके काल निर्णय के सम्बन्ध में विज्ञों का एक मत नहीं है पर यह सत्य है कि वीर निर्वाण की आठवीं नौवीं सदी के पूर्व इनकी रचना हो चुकी थी। १ आवश्यकनियुक्ति, गा०प० २ सूत्रार्थयोः परस्परं नियोजन सम्बन्धनं नियुक्तिः । ३ ४ ५ ---आवश्यकनियुक्ति, गा० ८३ -आचारांगनि० ११२।१ निश्चयेन अर्थप्रतिपादिका युक्तिनियुक्तिः । उत्तराध्ययन की भूमिका, पृ० ५०-५१ Indian Historical Quarterly, Vol. 12, p. 270.
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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