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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ४३१ उपसहार आगम साहित्य अत्यन्त विशाल है। उसमें प्रसंगानुसार नाना विषयों की चर्चाएं हैं । उसमें केवल धर्म, दर्शन, आचार-विचार की ही चर्चाएं नहीं अपितु सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक आदि अनेक जीवनोपयोगी विषयों की चर्चाएं हैं तथापि कुछ आगम ऐसे हैं जिनमें एक ही विषय की प्रमुखता है। प्रसंगानुसार अन्य विषय भी आये हैं पर वे गौणरूप से और वे उस मूल विषय को पुष्ट करने की दृष्टि से ही आये हैं। आचारांग, दशवकालिक में मुख्यरूप से साध्वाचार का निरूपण है। उत्तराध्ययन में साध्वाचार के साथ अन्य वर्णन भी आया है। इनमें मुख्य रूप से उत्सर्ग मार्ग का ही विधान है, कहीं-कहीं पर आपवादिक सूत्र हैं। छेदसूत्रों में भी साध्वाचार का विश्लेषण है पर उनमें उत्सर्ग और अपवाद दोनों मार्गों का वर्णन है। यदि प्रमाद और मोह वश दोष लग जाये तो उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का भी विधान है। उपासकदशांग में श्रावकाचार का विश्लेषण है। अन्तकृतदशा और अनुत्तरोपपातिक में उन महान विभूतियों का वर्णन है जिनका जीवन त्याग, तप व संयम से जगमगाया था। ज्ञाताधर्मकथा में घटनाओं के माध्यम से आत्म-साधना की पवित्र प्रेरणा दी गई है। विपाकसूत्र में शुभाशुभ कर्मों के फल पर कथानकों के माध्यम से प्रकाश डाला गया है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति में उस युग के भूगोल और खगोल का निरूपण है। सूत्रकृतांग, स्थानांग, प्रज्ञापना, समवायांग, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, भगवती, नन्दी और अनुयोगद्वार आदि आगमों में दार्शनिक विषयों की गंभीर चर्चाएं हैं। सूत्रकृतांग में उस समय में प्रचलित दार्शनिक मतों का निराकरण किया गया है। भूताद्वैतवाद का निरसन कर आत्मा की अलग संसिद्धि की गई है। ब्रह्माद्वैतवाद के स्थान पर नानात्मवाद की स्थापना की गई है। कर्म और उसके फल की सिद्धि बताई गई है। जगत की उत्पत्ति विषयक ईश्वरवाद का खण्डन कर संसार अनादि अनन्त है यह प्रतिपादित किया गया है। क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद आदि अनेक वाद जो
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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