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________________ ४३२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा उस समय प्रचलित थे उनका तर्कयुक्त खण्डन कर सम्यक्-क्रियावाद की स्थापना की गई है। प्रज्ञापना में जीव के विविध भावों का निदर्शन कर आत्मा और परलोक आदि को विविध युक्तियाँ देकर समझाया गया है। भगवतीसूत्र में नय, प्रमाण, सप्तभंगी, अनेकान्तवाद, कर्म, आत्मा आदि दार्शनिक विषयों का सुन्दर विश्लेषण है। नन्दीसूत्र में ज्ञान के स्वरूप व उसके भेद-प्रभेदों का अच्छा विवेचन किया है। स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग में आत्मा, पुद्गलादि षद्रव्य, ज्ञान प्रभृति विषयों की चर्चा है। अनुयोगद्वार में शब्दार्थ की प्रक्रिया का वर्णन मुख्य है। प्रसंगोपात्त इसमें प्रमाण, नय आदि का भी विश्लेषण है। . दस प्रकीर्णकों में साधक को आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए मंगलमय प्रेरणा दी गई है। जीव की गर्भस्थिति के सम्बन्ध में भी विचार किया गया है और आगे चलकर जब वह साधना-पथ पर बढ़ता है तो किस प्रकार विवेक एवं भक्तिपूर्वक जीवनयापन करता हुआ अन्तिम समय में समाधिपूर्वक प्राण-त्याग करे-इन सभी विषयों की विस्तार के साथ चर्चा की गई है। कुछ प्रकीर्णकों में ज्योतिष सम्बन्धी विचार भी हैं। महानिशीथ में साधक के अपवादमार्ग की विचारणा है। जीत व्यवहार में शंकास्पद स्थिति में कर्तव्य का निर्णय करने के नियामक तत्त्वों का वर्णन है। ओपनियुक्ति एवं पिण्डनियुक्ति में श्रमण की सामान्य सामाचारी का वर्णन है। यद्यपि ये दोनों नियुक्तियां हैं, तथापि इनकी परिगणना पैतालीस आगमों में की गई है। इस प्रकार आगम साहित्य में संपूर्ण जीव, जगत्, भौतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों की समस्त विधियों, घटनाओं, कर्तव्यों और नियामक नियमों पर विस्तार के साथ विश्लेषण प्राप्त होता है। मानव जीवन की सूक्ष्मतम समस्याओं के साथ-साथ समस्त प्राणिजगत देव-नारक-तिर्यंच, भूगोल, खगोल, आदि हजारों विषयों पर चिन्तन किया गया है, जो हमें कर्तव्य-बोध के साथ ही ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में दूर, बहुत दूर तक सोचने की प्रेरणा देता ह, आलोक देता है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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