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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ४२५ भाषा उद्गम बोष । गृहस्थ के द्वारा लगने वाले दोष उद्गम कहलाते हैं । ये आहार की उत्पत्ति के दोष हैं । उनके सोलह प्रकार हैं : (१) आधाकर्म-साधु का उद्देश्य रख कर बनाना। (२) औद्देशिक-सामान्य याचकों का उद्देश्य रख कर बनाना या निर्ग्रन्थ को दान देने के उद्देश्य से बनाना। ऐसी वस्तु या आहार श्रमण के लिए अग्राह्य होता है । अतः श्रमण दाता से कहता है कि इस प्रकार का आहार मुझे नहीं कल्पता।' दशवेकालिक, प्रश्नव्याकरण, सूत्रकृताङ्ग, उत्तराध्ययन' आदि आगम साहित्य में भी औद्देशिक ग्रहण का वर्णन किया है। जो भिक्षु औद्देशिक आहार की गवेषणा करता है वह उद्दिष्ट-आहार बनाने में होने वाली त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा का अनुमोदन करता है। विनयपिटक के अनुसार बौद्ध भिक्षु अपने उद्देश्य से बनाये हुए आहार का उपयोग करते थे और वे अपने लिए बनवा भी लेते थे। (३) पूति कर्म-शुद्ध आहार को आधाकर्मादि से मिश्रित करना। जिस प्रकार अशुचि-गंध के परमाणु वातावरण को विषाक्त बना देते हैं उसी प्रकार आधाकर्म-आहार का किञ्चित् अंश भी शुद्ध आहार में मिलकर उसे सदोष बना देता है। जिस घर में आधाकर्म आहार बनता है वह तीन दिन तक पूतिदोष युक्त होता है अतः श्रमण उस घर से चार दिन तक भिक्षा नहीं ले सकता। (४) मिश्रजात-अपने लिए व श्रमण के लिए एक साथ बनाना। इसके यावदाथिक-मिश्र, पाखण्डि-मिश्र और साधु-मिश्र ये तीन प्रकार हैं। भिक्षाचर और कुटुम्ब के लिए एक साथ पकाया जाने वाला १ दशवकालिक ५११४७-५४ २ दशवकालिक ५११५५, ६।४५-४६, ८-२३, १०.४. ३ प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार १२५ ४ सूत्र०१९१४ ५ उत्तरा० २०१४७ ६ दशव०६।४८ ७ विनयपिटक महावग्ग ६।४।३, पृ०२३४ ८ पिण्डनियुक्ति, पृ० २६८
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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