________________
अंगबाह्य आगम साहित्य
४२१
करना योग्य नहीं माना गया है। शुभ और अशुभ शकुनों की सूची भी दी गई है।
श्रमण किन-किन उपकरणों को लेकर विहार करे ? किस समय गमन करे, कहाँ पर ठहरे ? रात्रि गमन और एकाकी गमन का निषेध किया गया है । गच्छ के विहार की विधि-जो मार्ग ज्ञाता श्रमण हो उसे साथ में रखे । स्थान पर पहुँचने के उपरान्त उसके प्रमार्जन का विधान किया गया है। विकाल में प्रवेश करने पर वन-पशु, तस्कर, कुत्ते, बैल, वेश्या आदि का भय रहता है। उच्चार, प्रस्रवण और वमन को रोकने से जो हानि होती है उस पर भी प्रकाश डाला गया है।
वसति में प्रवेश करने के पश्चात संथारा लगाने की विधि, तस्करादि का भय हो तो कैसे रहना चाहिए। आचार्य से कहकर भिक्षा के लिए जाये। यदि कोई श्रमण बिना कहे ही चला गया हो तो, और समय पर पुनः न आया हो तो उसकी चारों दिशाओं में अन्वेषणा करे। यदि तस्कर उठाकर ले जायँ तो उस समय क्या करना चाहिए-इन बातों पर भी प्रकाश डाला गया है। उत्तर और पूर्व दिशा की ओर पीठ करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए और न पवन, गांव व सूर्य की ओर पीठ करके ही मल-मूत्र का त्याग करे। पिण्ड
द्वितीय पिण्डेषणाद्वार में गवेषणा, ग्रहणैषणा, ग्रासैषणा से विशुद्ध पिण्ड को श्रमण ग्रहण करे। द्रव्यपिण्ड के सचित्त, अचित्त और मिश्र ये तीन भेद किये हैं। सचित्त और मिश्र के , भेद किये हैं व अचित्त के दस भेद किये हैं।
वस्त्र प्रक्षालन कब व किस समय करना चाहिए। रुग्ण श्रमणों के वस्त्र पुन:-पुन: धोये, यदि न धोये जायेंगे तो जन-मन में जुगुप्सा होगी। पात्र लेप का विधान, न करने में दोष, लेप की विधि, लेप के प्रकार आदि पर प्रकाश डाला गया है। यदि चतुर्थ महाव्रत के खण्डित होने का प्रसंग उपस्थित हो जाये तो श्रमण प्राणों को न्यौछावर करदे पर व्रतभंग न करे।
ग्रहणषणा में आत्म-विराधना, संयम-विराधना, और प्रवचन-विराधना नामक दोषों का वर्णन है। पिण्डनियुक्ति में जिन बातों पर प्रकाश
१ वही, भाष्य ८२-६५