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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा १६ अनुयोग आर्य वज्र के पश्चात् आर्यरक्षित होते हैं। इनके गुरु का नाम 'आचार्य तोसलिपुत्र' था। आर्यरक्षित नौ पूर्व और दसवें पूर्व के २४ यविक के ज्ञाता थे। इन्होंने सर्वप्रथम अनुयोगों के अनुसार सभी आगमों को चार भागों में विभक्त किया (१) चरण करणानुयोग-कालिक श्रुत, महाकल्प, छेद श्रुत आदि । (२) धर्मं कथानुयोग - ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन आदि । (३) गणितानुयोग — सूर्यप्रज्ञप्ति आदि । (४) द्रव्यानुयोग - दृष्टिवाद आदि । विषय - सादृश्य की दृष्टि से प्रस्तुत वर्गीकरण किया गया है। व्याख्या -क्रम की दृष्टि से आगमों के दो रूप होते हैं :-. (१) अपृथक्त्वानुयोग (२) पृथक्त्वानुयोग आरक्षित से पहले अपृथक्त्वानुयोग का प्रचलन था । अपृथक्त्वा नुयोग में हर एक सूत्र की व्याख्या चरण-करण, धर्म, गणित और द्रव्य की दृष्टि से होती थी । यह व्याख्या अत्यधिक क्लिष्ट और स्मृति-सापेक्ष थी । आर्यरक्षित के चार मुख्य शिष्य थे - ( १ ) दुर्बलिका पुष्यमित्र (२) फल्गुरक्षित ( ३ ) विन्ध्य और (४) गोष्ठामाहिल । उनके शिष्यों में विन्ध्य प्रबल मेधावी था । उसने आचार्य से अभ्यर्थना की कि सहपाठ से अत्यधिक विलम्ब होता है अतः ऐसा प्रबन्ध करें कि मुझे शीघ्र पाठ मिल जाए। आचार्य के आदेश से दुर्बलिका पुष्यमित्र ने उसे वाचना देने का कार्य अपने ऊपर लिया । अध्ययनक्रम चलता रहा। समयाभाव के कारण दुर्बलिकापुष्यमित्र अपना स्वाध्याय व्यवस्थित रूप से नहीं कर सके। वे नौवें पूर्व को भूलने लगे, तो आचार्य ने सोचा कि प्रबल प्रतिभा सम्पन्न दुर्बलिका पुष्य १ प्रभावक चरित्र आर्यरक्षित, श्लोक ८२-८४ २ (क) आवश्यक नियुक्ति, ३६३-३७७ (ख) विशेषावश्यक भाष्य, २२८४-२२६५ (ग) दशवेकालिक नियुक्ति, ३ टी०
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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