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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ४१६ में आकस्मिक उपसर्ग या कष्ट उपस्थित होने पर श्रमण एकाकी विहार करे । अनशन करने के लिए यदि अन्य संघाडे का अभाव है तो भी एकाकी गमन करे । रुग्ण होने पर अन्य सन्त के अभाव में औषधि आदि लाने के लिए एकाकी गमन करे। देवता का उपसर्ग होने पर एकाकी विहार कर सकता है। आचार्य की आज्ञा को शिरोधार्य कर एकान्त में विहार किया जा सकता है। बिहार विधि का निरूपण करते हुए बताया है कि श्रमण को मार्ग पूछना चाहिए । मार्ग में पृथ्वीकाय आदि हो तो प्रमार्जन करना । मार्ग में यदि नदी आ जाये तो उसे पार करने की विधि बताई है। भयंकर जंगल को पार करते समय यदि आग लग गई है तो पाँवों में चर्म या पादत्राण आदि को धारण कर मार्ग को पार करे। तेज वायु का प्रकोप होने पर कम्बल आदि से शरीर को ढककर विहार करे। इसी प्रकार वनस्पति व त्रसद्वार का वर्णन है । संयम साधना के लिए आत्मरक्षा आवश्यक है। यह सत्य तथ्य है कि सर्वत्र संयम की रक्षा करनी चाहिए किन्तु आत्म-रक्षा के बिना संयम - पालन संभव नहीं है क्योंकि जीवित रहने पर संयम से भ्रष्ट होने पर भी तप आदि के द्वारा उन दोषों की विशुद्धि की जा सकती है अन्त में परिणामों की विशुद्धता ही मोक्ष का कारण है। संयम के लिए देह धारण की जाती है, देह के अभाव में संयम का पालन कहाँ से हो सकता है, इसलिए संयम की वृद्धि के लिए देह का पालन करना उचित है। ईर्यापथ आदि जितनी भी हलन चलन की क्रियाएँ हैं वे अविवेकी श्रमण के लिए कर्मबंधन का कारण हैं और विवेकी श्रमण के लिए मोक्ष में सहायक होती है। यदि कोई श्रमण रुग्ण है तो तीन, पाँच या सात श्रमण निर्मल वस्त्र धारण कर शुभ शकुन को देखकर वैद्य के पास जायें। यदि उस समय वैद्य किसी के फोड़े का ऑपरेशन कर रहा हो, तो उस समय उससे बात न करें, १ सव्वत्थ संजमं संजभाउ अप्पाणमेव रक्खिज्जा । मुच्चद्द अइवायाओ पुणो विसोही न याविरई ॥ २ संयमहेजं देहो धारिज्जइ सो कभी उ तदभावे ? संयमफाइनिमित्तं देहपरिपालना इट्ठा ॥ ३ वही, गा० ५४ --- ओधनियुक्ति, गा० ४६ वही, गा० ४७
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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