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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
पर इन्द्र द्वारा अस्थियाँ ले जाने का वर्णन नहीं आया है। अन्तकृद्दशाङ्ग सूत्र में तीर्थंकरों का चरित्र नहीं है वहाँ तो मोक्ष प्राप्त करने वाले मुनियों का पवित्र-चरित्र है। समवायांग व नन्दी में जहाँ पर अन्तकृतदशांग की विषय सूची दी गई है वहाँ पर भी तीर्थकर चरित्र की बात नहीं है अतः महानिशीथ का प्रस्तुत कथन प्रमाणभूत नहीं है।
महानिशीथ के पञ्चम अध्ययन में महावीर के शासन के आचार्यों की संख्या लिखी है कि पचपन करोड़ लाख, पचपन करोड़ हजार, पचपन सौ करोड़ और पचपन करोड़ आचार्य होंगे। इनमें से कितने ही गुणाकीर्ण और निवृत्तिगामी होंगे। जो आचार्य सर्वोत्तम होते हैं उन्हीं की गणना तीर्थंकर के पश्चात् की जाती है। आचार्यों की जो संख्या दी गई है उसका मूल स्रोत अङ्ग और अङ्ग बाह्य आगम जो महानिशीथ से पूर्व रचित हैं उनमें प्राप्त नहीं होता है। यह उल्लेख सर्वप्रथम महानिशीथ में ही मिलता है उसके पश्चात् रचे हुए युगप्रधान स्तवों में प्रस्तुत संख्या मिलती है।
इस प्रकार महानिशीथ में ऐसी अनेक बातें हैं जिनका समर्थन प्रमाणभूत आगम साहित्य से नहीं होता है।
१ एत्थं चायरियाणं, पणपण्णं होति कोडिलक्खाओ। .
कोडिसहस्से कोडिसएय तह एत्तिए चैव ।। एतेसिं मझाओ, एगे निब्बुइ गुणगणाइन्ने । सब्वुत्तामभंगेणं, तित्थयरस्साणुसरिसगुरु ।।
--महानिशीष ५९२