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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य **** अंग साहित्य से नहीं होता, अतः यह महानिशीथ एक स्वतंत्र कृति है, जिसके कर्ता का नाम अज्ञात है । ' महानिशीथ के छठे अध्ययन में दस पूर्वी नन्दीषेण की कथा है। दश पूर्वधरों की गणना आगम व्यवहारियों में की गई है। वह नन्दीषेण श्रामण्य पर्याय का परित्याग कर गणिका के चंगुल में किस प्रकार फँस सकता है ? यह प्रश्न विज्ञों के लिए चिन्तनीय है । आवश्यकचूर्णि और त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में जो नन्दीषेण की कथा है उसका मेल महानिशीथ की कथा से नहीं बैठता है । महानिशीथ के तृतीय अध्ययन में वर्णन है कि 'तीर्थंकर के निर्वाण के पश्चात् शोक से आकुल-व्याकुल होकर इन्द्र तीर्थंकर के शरीर का अग्नि संस्कार करते हैं । क्षीर समुद्र में उनकी अस्थियों को प्रक्षालन कर स्वर्ग में ले जाते हैं। श्रेष्ठ चन्दन रस से उसका विलेपन कर मन्दार, पारिजात, शतपत्र, सहस्रपत्र कमल पुष्पों से उनका अर्चन कर देव पुनः अपने विमान स्थानों में चले जाते हैं । इन अस्थि आदि की अर्चना और स्वप्न आदि का सविस्तृत वर्णन जो जिनचरिताधिकार अन्तकृद्दशांग में दिया गया है वहाँ से जानना चाहिए। * निर्वाण के पश्चात् तीर्थंकरों की दाढें इन्द्र ले जाते हैं यह वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति व त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र आदि में आया है १ वही, पृ० ७६ ॥ २ आवश्यकचूर्ण, पूर्वाधं, पत्र ५५६ । ३ त्रिषष्टि, १० ६ । ४ काऊणं सोगत्ता, सुण्णे दस दिसि वहे पलोयंता । जह खीरसागरे जिण वराण अट्ठी परवालिऊण च ॥ सुरलोए नेऊणं, आलिपिऊण पवरचंदणरसेणं । मन्दर-पारियाय सयवत्त सहस्पतेहि ॥ जह अच्कण सुरा, नियनियमवणेसु जह व ते धुणंति । तं सव्वं महया वित्थरेण अरहंतचरियाभिहाणे अंतकडदसाणं मज्झाओ कसिणं विन्नेयं । --महानिशीथ ३।५६-५७ ५. तएण से सक्के देविदे देवराया भगवओो तित्यगरस्स उवरिल्लं दाहिणं सकहं गेण्हद्द, ईसा देविदे देवराया उवरिल्लंवामं सकहं गेण्हर, चमरे असुरिंदे असुरराया हिद्विलं दाहिण सकहं गेव्हर, बल्ली वइरोआणिदे वैरेाणिराया हिट्टिलंवामं सकहं गेहइ । -जम्बू० वक्षस्कार २, सूत्र ३३ ६ त्रिषष्टि० पर्व १०, सर्ग १३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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