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________________ ४०८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा अत: वे हरिभद्रसूरि की कृति का समर्थन कैसे कर सकते हैं। यक्षसेन, रविगुप्त, देवगुप्त ये अप्रसिद्ध नाम हैं। हरिभद्र के समय या कुछ परवर्ती काल में उक्त नाम के आचार्यों के अस्तित्व का इतिहास से समर्थन नहीं होता। ऊकेशगच्छ में प्रति चौथे आचार्य का नाम देवगुप्त सूरि दिया जाता था परन्तु इस प्रकार के नामों के निर्देश मात्र से किसी के समय का निर्णय नहीं हो सकता। नेमिचन्द्र और जिनदासगणी क्षपक के नाम भी परस्पर समसामयिक नहीं हैं । नेमिचन्द्र का समय विक्रम की ग्यारहवीं शती के पूर्वार्ध में पड़ता है, तब जिनदासगणी क्षपक को यदि निशीथ की विशेष चूणि का निर्माता जिनदासगणी महत्तर मान लिया जाय तो इनका सत्ता समय विक्रम की आठवीं शती के उत्तरार्ध में पड़ेगा जो संगत हो सकता है परन्तु एक दो का समर्थन मिल जाने मात्र से महानिशीथ का हरिभद्रसूरि द्वारा उद्धार होना प्रमाणित नहीं हो सकता क्योंकि हमने हरिभद्र सूरि के लगभग ६० ग्रन्थ पढ़े हैं किन्तु उनमें महानिशीथ के उद्धार की बात का कहीं भी निर्देश नहीं है। अतः महानिशीथसूत्र दीमक से खण्डित कर दिया गया और आचार्य हरिभद्र ने इसको अन्यान्य शास्त्र पाठों से व्यवस्थित किया और सिद्धसेन आदि आठ श्रुतधर, यूगप्रधान आचार्यों ने इसे प्रमाणित ठहराया, आदि दन्तकथा सत्य नहीं है।' मुनिश्री ने अपने निबन्ध में आगे लिखा है कि महानिशीथ के उपधान के प्रसंग में पञ्चमंगल महाश्रुतस्कन्ध के उद्देश्य तथा अनुज्ञा के प्रसंग में दिन, लग्न शब्द प्रयुक्त हुए हैं जिससे महानिशीथ के निर्माण का समय का पता लगता है। वर्तमान में जो महानिशीथसूत्र है उसकी रचना विक्रमीय नौवीं शती या उसके पश्चात् के समय को सूचित करती है। वर्तमान पद्धति के भारतीय पंचाङ्ग विक्रम की नौवीं शती के उत्तरार्ध में बनने लगे और इस समय के बाद के लेखों, प्रशस्तियों में 'लग्न' 'वार' 'दिन' शब्द प्रयुक्त होने लगे थे, पहले नहीं। आज का महानिशीथ नन्दी सूत्र निर्दिष्ट महानिशीथ नहीं है। इसमें सैकड़ों ऐसी बातें और परिभाषाएँ उपलब्ध हैं जो इस कृति को विक्रम की नौवीं शती से पहले की प्रमाणित नहीं होने देती। साथ ही इस आगम में ऐसी अनेक बातें हैं जिसका मेल १ प्रबन्ध पारिजात, पु०७१-७२
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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