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अंगबाह्य आगम साहित्य ४०३ ज्ञानगुण, चरणगुण, मरणगुण-इन सात विषयों का विस्तार से विवेचन है। इस प्रकीर्णक में १७५ गाथाएँ हैं।
(१२) वीरस्तव (वीरत्थव) इसमें श्रमण भगवान महावीर की स्तुति की गई है। महावीर के अनेक नामों का उल्लेख भी हुआ है। इसमें ४३ गाथाएं हैं।
इन प्रकीर्णकों के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकीर्णकों की रचनाएँ हई हैं। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं
तित्थोगाली, अजीवकल्प, सिद्धपाहुड (सिद्धप्राभृत), आराहणपहाआ (आराधनापताका) दीवसायरपण्णत्ति (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति), जोइसकरंडक (ज्योतिष्करण्डक), अंगविज्जा (अंगविद्या), तिहिपइण्णग, सारावलि, पज्जंताराहणा (पर्यन्ताराधना), जीवविहत्ति (जीवविभक्ति), कवचप्रकरण जोणिपाहुड आदि।
इन सभी प्रकीर्णकों में जीवन-शोधन की विविध प्रक्रियाएँ बताई गई हैं। जीवन में निर्मलता और पवित्रता किस प्रकार आ सकती है इस पर चिन्तन किया गया है, साथ ही कुछ ग्रन्थों में ज्योतिष और निमित्त सम्बन्धी बातों पर भी प्रकाश डाला गया है।
१ विणयं आयरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गह गुणे य ।
नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणे इत्थ वच्छामि ॥
-बनावेध्यक, गा०३