________________
अंगबाह्य आगम साहित्य ३६६ वर्णन करता है। बीस भवनेन्द्रों के नाम, भवन संख्या, भवनेन्द्रों की स्थिति, भवनेन्द्रों के नगर और भवन, त्रायस्त्रिशक देव, लोकपाल, परिषद और सामानिक देव, सब इन्द्रों के सामानिक देवों की संख्या में समानता, भवनेन्द्रों की अग्रमहिषिया, भवनेन्द्रों के आवासस्थान, उपपात, भवनेन्द्रों का बल-बीर्य आदि पर प्रकाश डालता है।
उसके पश्चात् आठ प्रकार के व्यन्तर देव, व्यन्तर देवों के महद्धिक सोलह इन्द्र, तीनों लोक में व्यन्तरेन्द्रों का स्थान, व्यन्तरेन्द्रों का जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट विस्तार और उनकी स्थिति का चित्रण किया गया है।
उसके बाद ज्योतिषी देवों का वर्णन है। पांच प्रकार के ज्योतिषी देव हैं। ज्योतिषी देवों के विमानों का संस्थान, पृथ्वी से ज्योतिषी देवों की ऊँचाई, ज्योतिषी देवों के मण्डल, मण्डलों का आयाम, विष्कम्भ, बाहल्य, परिधि, ज्योतिषी देवों के विमानों को वहन करने वाले देवों की संख्या, ज्योतिषी देवों की गति और ऋद्धि, सर्वआभ्यन्तर, सर्ववाह्य, सबसे ऊपर और सबसे नीचे भ्रमण करने वाले नक्षत्र, ताराओं का अन्तर, चन्द्र और सूर्य के साथ योग करने वाले नक्षत्र, जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोद समुद्र, पुष्करवरद्वीप, पुष्करार्धद्वीप, मनुष्यलोक के चन्द्र आदि पाँच ज्योतिषी देव । मनुष्यलोक के बाहर चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव । ज्योतिषी देवों की गति का संस्थान, ज्योतिषी देवों की पंक्तियाँ, चन्द्र सूर्य और मण्डलों में दक्षिणावर्त गति, नक्षत्र और ताराओं के अवस्थिति मण्डल, ज्योतिषी देवों की गति का मनुष्यों पर प्रभाव, चन्द्र सूर्य का ताप क्षेत्र, चन्द्र की हानि-वृद्धि का कारण, चर और स्थिर ज्योतिषी देव, मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र सूर्य, चन्द्र सूर्य का नक्षत्रों से योग, चन्द्र सूर्य का अन्तर, एक चन्द्र का परिवार, ज्योतिषी देवों की स्थिति, आदि का वर्णन है।
उसके पश्चात् वैमानिक देवों का वर्णन है। बारह देवलोकों के बारह इन्द्र बताये हैं। अहमिन्द्र ग्रैवेयक देव, प्रैवेयक देवों के उपपात, बारह देवलोकों की विमान संख्या, वैमानिक देवों की स्थिति, अवेयक देव और अनुत्तर देवों की स्थिति, विमानों के संस्थान, उनका आधार, देवताओं में लेश्या, उनकी अवगाहना, उनमें प्रविचार (मैथून), देवताओं की गंध, उनके विमानों की अवस्थिति, भवनों और विमानों का अल्प-बहुत्व, अनुत्तर देवों का
.
देवेन्द्रस्तव, गाथा १६३-१६५