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________________ ३६८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा दिवस, (६) मुहतं, (७) शकुन, (८) लग्न और (8) निमित्त-इन नौ विषयों का विवेचन है। दिवस से तिथि, तिथि से नक्षत्र, नक्षत्र से करण, करण से ग्रह-दिवस, ग्रहदिवस से मुहर्त, मुहूर्त से शकुन, शकून से लग्न, और लग्न से निमित्त बलवान होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में विहार के लिए शुभाशुभ तिथियां, शिष्य का निष्क्रमण, तिथियों के नाम एवं दीक्षा के लिए श्रेष्ठ तिथियां बताई हैं। नौ नक्षत्रों में गमन करना शुभ माना गया है। प्रस्थान के लिए उपयुक्त नक्षत्रों का वर्णन करने के उपरांत निषिद्ध नक्षत्रों में गमन करने का निषेध किया है। पादपोपगमन संथारा के लिए कौनसा नक्षत्र उपयुक्त है। दीक्षा में कौन-से नक्षत्र निषिद्ध हैं, ज्ञान वृद्धि और लोच के लिए कौन-से नक्षत्र क्षेष्ठ हैं। गणी और वाचक पद के लिए, स्थिर कार्य के लिए, ज्ञान सम्पादन के लिए, मृदु कार्यों के लिए, तप व संथारा और संघ के कार्यों के लिए कौन-सा नक्षत्र श्रेष्ठ है-उस पर प्रकाश डाला है। करण के नाम, शुम कार्यों के लिए कौनसा करण उपयुक्त है । छाया मुहर्त, अच्छे कार्यों के लिए शुभ योग, तीन प्रकार के शकून, तीन प्रकार के शकुनों में किया जाने वाला कार्य, प्रशस्त और अप्रशस्त लग्न, मिथ्या और सत्य निमित्त, तीन प्रकार के निमित्त, निमित्त की सत्यता, प्रशस्त निमित्तों में सभी कार्य करने चाहिए और अप्रशस्त निमित्तों में सभी शुभ कार्य करने का निषेध किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में होरा का भी वर्णन है। (e) देवेन्द्रस्तव (देविदधव) देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक में बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । इसमें ३०७ गाथाएं हैं। ग्रन्थ के प्रारंभ में बताया है कि कोई श्रावक भगवान ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर महावीर तक की स्तुति करता है। तीर्थकर बत्तीस इन्द्रों से पूजित है। श्राविका अपने पति से जिज्ञासा प्रस्तुत करती है कि बत्तीस इन्द्र कौन-कौन से हैं ? बत्तीस इन्द्रों के रहने का स्थान कौन सा है ? बत्तीस इन्द्रों की स्थिति, बत्तीस इन्द्रों के अधिकार में भवन या विमान, भवनों और विमानों की लम्बाई-चौड़ाई, ऊंचाई, वर्ण आदि, बत्तीस इन्द्रों के अवधिज्ञान का क्षेत्र आदि छह प्रश्न पूछती है। . .... श्रावक उसका समाधान करते हए सर्वप्रथम भवनवासी देवों का
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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