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अंगबाह्य आगम साहित्य
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गच्छ के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए लिखा है कि गच्छ महान प्रभावशाली है, उसमें रहने से महान् निर्जरा होती है। सारणा, वारणा और प्रेरणा होने से साधक के पुराने दोष नष्ट होते हैं और नूतन दोषों की उत्पत्ति नहीं होती। वह सुगच्छ है जिस गच्छ में दान, शील, तप और भावना इन चार प्रकार के धर्मों का आचरण करने वाले गीतार्थ श्रमण अधिक मात्रा में हों।२।।
श्रमणियों की मर्यादा का वर्णन करते हुए बताया है कि जिस गच्छ में स्थविरा महासती के पश्चात् युवा महासती रात्रि में शयन करती हो, और युवा महासती के पश्चात् स्थविरा महासती शयन करती हो। इस प्रकार जिस संघ में श्रमणियों के सोने की व्यवस्था हो वह संघ ज्ञान, दर्शन और चारित्र का आधारभूत श्रेष्ठ गच्छ है।
श्रमणों को श्रमणियों से अधिक परिचय नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका परिचय अग्नि और विष के समान है। सम्भव है स्थविर का चित्त पूर्ण स्थिर हो तथापि अग्नि के समीप में घी रहने से वह पिघल जाता है वैसे ही स्थविर के संसर्ग से आर्या का चित्त पिघल सकता है। यदि उस समय कदाचित् स्थविर को भी अपनी संयम साधना की विस्मृति हो जाये तो उसकी भी वैसी ही स्थिति होती है जैसे श्लेष्म में लिपटी हुई मक्खी की होती है। एतदर्थ श्रमण को बाला, वृद्धा, नातिन, दुहिता और भगिनी तक के शरीर का स्पर्श करने का निषेध है। .. शं करने का निषेध है। .
. (5) गणिविद्या (गणिविज्जा) गणिविद्या यह ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें केवल ५२ गाथाएँ हैं। इसमें (१) दिवस, (२) तिथि, (३) नक्षत्र, (४) करण, (५) ग्रह
-च्छाचार, गा०५१
-बही, गा० १००
१ गच्छो महाणुभावो तत्थ वसंताण निज्जरा विउला।
सारणवारणचोअणमाईहिं न दोसपडिवत्ती॥ २ सीलतवदाणमावण चउम्विहधम्मतरायभयभीए ।
जत्थ बह गीअत्थे गोअम ! गच्छं तयं भणियं ॥ ३ जत्य य घेरी तरुणी फेरी तरुणीय अंतरे सुबह ।
गोअम! तं गच्छवरं वरनाणचरित्तआहारं ॥ ४ तुलना कीजिए
मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वां न विविक्तासनो भवेत् । बलवानिद्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ॥
वही, गा० १२३
मम मनुस्मृति, २२२१५