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________________ ३६६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (७) गच्छाचार ( गच्छायार) इसमें गच्छ अर्थात् समूह में रहने वाले श्रमण श्रमणियों के आचार का वर्णन है । इस प्रकीर्णक में १३७ गाथाएं हैं। यह प्रकीर्णक महानिशीथ, बृहत्कल्प व व्यवहार सूत्रों के आधार पर लिखा गया है। इस पर आनन्दविमलसूरि के शिष्य विजयविमलगणि की टीका है। इसमें गच्छ में रहने वाले आचार्य तथा श्रमण और श्रमणियों के आचार का वर्णन है। असदाचारी श्रमण गच्छ में रहता है तो वह संसार परिभ्रमण को बढ़ाता है जबकि सदाचारी श्रमण गच्छ में रहता है तो धर्मानुष्ठान की प्रवृत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती है। जो श्रमण आध्यात्मिक साधना से अपने जीवन का उत्कर्ष करना चाहते हैं उन्हें चाहिए कि जीवन पर्यन्त वे गच्छ में ही रहें, क्योंकि गच्छ में रहने से उनकी साधना बिना बाधा के हो सकती है। जो गुरु शिष्य के द्वारा श्रमणाचार के विरुद्ध कार्य करने पर भी प्रायश्चित्त आदि देकर उसका शुद्धिकरण नहीं करता है, उस शिष्य को हितमार्ग पर नहीं लगाता है वह गुरु शिष्य के लिये शत्रु के समान है। इसी तरह यदि गुरु साधना के महामार्ग से च्युत होकर असद्मार्ग की ओर जाता है तो शिष्य का कर्तव्य है कि वह उन्हें सन्मार्ग यानि धर्ममार्ग की ओर बढ़ाये यदि वह नहीं बढ़ाता है तो वह शिष्य भी शत्रु के समान है । आचार्य संघ का पिता है। उसका स्वयं का जीवन आचार की सुमघुर सौरभ से महकता है और जो उसके नेतृत्व में रहते हैं उन्हें भी वह आचारमार्ग पर चलने की प्रबल प्रेरणा देता है। किन्तु जो आचार्य स्वयं साधना से भ्रष्ट है, भ्रष्टाचारी है, संघ में भ्रष्टाचारियों की उपेक्षा करता है और उन्मार्गस्थित है ऐसा आचार्य मोक्षमार्ग को नष्ट करने वाला है। * १ महानिसीहकप्पाओ, ववहाराजो तहेव य । nigefragr मच्छायारं समुद्धियं ॥ २ तम्हा निउणं निहालेउं, गच्छं सम्मम्मपट्टियं । वसिज्ज तत्थ आजम्मं, गोयमा ! संजए मुणी ॥ ३ जीहाए बिलिहतो न भओ सारणा जहि नत्थि । डंडेण वि ताडंतो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥ सीसो वि वेरिओ सो उ, जो गुरु न विबोहए । पमायमइरावत्थं, सामायारी ४ भट्ठायारो सूरि भट्टयाराणुवेक्खओ सूरि । उम्मग्गठिओ सूरि तिनि चि मग्गं पणासंति ॥ गच्छाचार, गा० १३५ गच्छाचार, गा० ७ विराहयं ॥ गच्छाचार, गा० १७-१८ -वही, गा० २८
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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