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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ३६३ . यह जीव दो सौ साढ़े सतहत्तर दिन-रात तक गर्भ में रहता है। ये दिन-रात सामान्य तौर पर गर्भवास में लगते हैं। विशेष परिस्थिति में इससे न्यून या अधिक समय भी लग सकता है। गर्भस्थ जीव के मुहूर्त, उनके श्वासोच्छ्वास, योनि का स्वरूप, गर्भ में स्थित जीवों की संख्या अधिक से अधिक नौ लाख होती है। स्त्री-पुरुष का अबीजकाल, बारह मुहूर्त में जीवों की उत्पत्ति, बारह वर्ष पर्यन्त गर्भस्थ जीव की उत्कृष्ट पितृ-संख्या, स्त्री, पुरुष और नपुंसक का कुक्षि स्थान, तिर्यंच का उत्कृष्ट गर्भ-स्थिति काल, गर्भस्थ जीव का सर्वप्रथम आहार, गर्भस्थ जीव का वृद्धिक्रम, गर्भस्थ जीव के मल-मूत्र का अभाव, उसका आहार का परिणाम, वह कवलाहार नहीं किन्तु ओज आहार लेता है, गर्भस्थ जीव के तीन माता के अंग होते हैं और तीन पिता के अंग होते हैं। गर्भस्थ जीव की नरकगति आदि के बंध का वर्णन किया गया है। - गर्भावस्था का वर्णन करते हुए लिखा है कि रक्तोत्कट स्त्री के गर्भ में एक साथ अधिक से अधिक नौ लाख जीव उत्पन्न होते हैं, बारह मुहूर्त तक वीर्य सन्तान पैदा करने के योग्य रहता है। उत्कृष्ट नौ सौ पिता की एक सन्तान हो सकती है। गर्भ की स्थिति उत्कृष्ट बारह वर्ष की है। दक्षिण कुक्षि में जो जीव रहता है वह पुरुष होता है, वाम कुक्षि में जो जीव रहता है वह स्त्री, और जो जीव दोनों कुक्षियों के मध्य में रहता है वह नपुंसक होता है। तिर्यंचों की उत्कृष्ट गर्भस्थिति आठ वर्ष मानी जब वीर्य की मात्रा स्वल्प होती है और रक्त को बहुलता होती है तो स्त्री पैदा होती है। जब रक्त की मात्रा अल्प और वीर्य की मात्रा बहुत होती है तब पुरुष पैदा होता है। जब दोनों की मात्रा समान होती है तब नपुंसक पैदा होता है। जब स्त्री का शोणित जम जाता है तब मांसपिण्ड उत्पन्न होता है उसमें पिता के अंग नहीं होते। प्रसव की पीड़ा, जन्म और मरण के दुःख पर भी चिन्तन किया गया है। गर्भज जीव की दश दशाओं के नाम इस प्रकार बताये हैं-(१) बाल दशा, (२) क्रीड़ा दशा, (३) मन्दा दशा, (४) बला दशा, (५) प्रज्ञा दशा (६) हायनी दशा, (७) प्रपंचा दशा, (८) प्राग्भारा दशा, (९) मुन्मुखी दशा, (१०) शायनी दशा।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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