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________________ १२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (३) वैयाकरण-व्याख्यात्मक ग्रन्थ । (४) गाथा-पद्य में निर्मित ग्रन्थ । .., (५) उवान-बुद्ध के मुखारविन्द से निःसृत भावपूर्ण प्रीति-उद्गार । (६) इतिवृत्तक-लघुप्रवचन, जो 'बुद्ध ने इस प्रकार कहा' से प्रारम्भ होते हैं। (७) जातक-बुद्ध के पूर्व-भव।। (5) अग्भुतधम्म-चमत्कारिक वस्तुओं और विभूतियों का वर्णन करने वाले ग्रन्थ । (e) वेदल्ल-प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये उपदेश । द्वादशांग इस प्रकार हैं (१) सूत्र (२) गेय (३) व्याकरण (४) गाथा (५) उदान (६) अवदान (७) इतिवृत्तक (6) निदान (९) वैपुल्य (१०) जातक (११) उपदेश धर्म और (१२) अद्भुत धर्म । अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य आगमों का दूसरा वर्गीकरण देवद्धिगणी क्षमाश्रमण के समय का है। उन्होंने आगमों को अंग-प्रविष्ट और अंगबाह्य इन दो भागों में विभक्त किया। अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य का विश्लेषण करते हुए जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने तीन हेतु बतलाये हैं। अंगप्रविष्ट श्रृत वह है (१) जो गणघर के द्वारा सूत्र रूप से बनाया हआ होता है। (२) जो गणधर के द्वारा प्रश्न करने पर तीर्थंकर के द्वारा प्रतिपादित होता है। (३) जो शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित होने के कारण ध्र व एवं सुदीर्घकालीन होता है। १ अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-अंगपविट्ठ अंगबाहिरं च। . -नंदीसूत्र ४३ २ गणहर थेरकयं वा, आएसा मुक्क-वागरणओ वा। घुव-चल विसेसओ वा अंगाणंगेसु नाणतं ॥ . . -विशेषावश्यक भाष्य गा०५५२
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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