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________________ जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन ११ पातिक (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विपाक और (१२) दृष्टिवाद-ये बारह अंग हैं। __आचार प्रभृति आगम श्रुत-पुरुष के अंगस्थानीय होने से भी अंग कहलाते हैं। वैदिक परम्परा में वेद के अर्थ में अंग शब्द व्यवहृत नहीं हुआ है अपितु वेद के अध्ययन में जो सहायक ग्रन्थ हैं, उनको अंग कहा गया है और वे छह हैं: (१) शिक्षा-शब्दोच्चारण के विधान का प्ररूपक ग्रन्थ । (२) कल्प-वेद-निरूपित कर्मों का यथावस्थित प्रतिपादन करने वाला ग्रन्थ। (३) व्याकरण-पद-स्वरूप और पदार्थ निश्चय का वर्णन करने वाला ग्रन्थ । (४) निरुक्त-पदों की व्युत्पत्ति का वर्णन करने वाला ग्रन्थ । .. (५) छन्द-मन्त्रों का उच्चारण किस स्वर विज्ञान से करना, इसका निरूपण करने वाला ग्रन्थ । (६) ज्योतिष-यज्ञ-याग आदि कृत्यों के लिए समय शुद्धि को बताने वाला ग्रन्थ । बौद्ध साहित्य के मूल ग्रन्थ त्रिपिटक माने जाते हैं। यद्यपि उनके साथ अंग शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है किन्तु पालि-साहित्य में बुद्ध के वचनों को नवांग और द्वादशांग अवश्य ही कहा गया है। नवांग इस प्रकार है (१) सुत्त-बुद्ध का गद्यमय उपदेश। .. (२) गेय्य-गद्य-पद्य मिश्रित अंश । १ मूलाराधना ४/५६६ विजयोदया। २ पाणिनीय शिक्षा-४१-१२ ३ सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र २१३४ (डॉक्टर नलिनाक्ष दत्त का देवनागरी संस्करण, रायल एशियाटिक सोसाइटी कलकत्ता, सन् १९५३) ४ सूत्र गेयं व्याकरणं, गाथोदानावदानकम् । इतिवृत्तकं निदानं, वैपुल्यं च सजातकम् । उपदेशाद्भुतो धर्मो, द्वादशांगमिदं वचः ।। -बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ अभिसमयालंकार की टीका, पृ०३५
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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