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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ३७९ निशीथाध्ययन में बीस उद्देशक हैं और लगभग १४२६ सूत्रों में प्रायश्चित्त का विधान है। पञ्चकल्पभाष्यचूर्णिकार ने कल्प, व्यवहार आदि के साथ निशीथाध्ययन भी श्रुतधर भद्रबाहु स्वामी द्वारा पूर्वश्रुत से उद्धृत बताया है किन्तु सत्य-तथ्य यह नहीं है। बृहल्कल्प की भाषा और प्रतिपादित विषयों तथा निशीथाध्ययन के सूत्रों की भाषा और उसमें प्रतिपादित विषयों में स्पष्ट रूप से भिन्नता प्रतीत होती है। यह सत्य है कि बृहत्कल्प की भाषा और व्यवहार की भाषा में भी भिन्नता है पर वह भिन्नता व्यवहार में बाद में किये गये परिवर्तनों के कारण है। यही कारण है कि व्यवहारसूत्र में निशीथाध्ययन का प्रकल्पाध्ययन यह नाम प्राप्त होता है। यह परिवर्तन संभव है आर्यरक्षितसूरि के पश्चात् हुआ हो। छेदसूत्रकार भद्रबाहु नियुक्तिकार भद्रबाहु से पृथक् हैं। नियुक्तिकार भद्रबाहु का अस्तित्वकाल विक्रम की छठी शताब्दी माना गया है। छेदसूत्रकार भद्रबाहु का अस्तित्वकाल वीर नि० की दूसरी शताब्दी है। निशीथ में ४ प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन है। निशीथ में २० उद्देशक हैं। १६ उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान है और २०वें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया है। प्रथम उद्देशक में गुरुमासिक प्रायश्चित्त का विधान है। द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम उद्देशकों में लघुमासिक प्रायश्चित्त का वर्णन है। छठे से लेकर ११वें उद्देशक तक गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का विवेचन है। १२वें उद्देशक से १९वें उद्देशक तक लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त का प्रतिपादन है । २०वें उद्देशक में आलोचनाएँ एवं प्रायश्चित्त करते समय जो दोष लगते हैं उन पर चिन्तन किया गया है और उसके लिए विशेष प्रायश्चित्त की व्यवस्था है। प्रायश्चित्त के दो प्रकार हैं-(१) मासिक और (२) चातुर्मासिक । द्विमासिक, पंचमासिक और षण्मासिक-ये प्रायश्चित्त आरोपणा से बनते हैं। २०वें उद्देशक में मुख्य विषय आरोपणा है। स्थानांगसूत्र में आरोपणा के पांच प्रकार बताये हैं तो समवायांग में २८ प्रकार बताये हैं। श्रमण १ प्रबन्ध परिजात में 'निशीथसूत्र का निर्माण और निर्माता' लेख । २ बृहत्कल्प, मा०६, पृ०१ से २० ३ ठाणांगसूत्र ४३३ ४. समवायांग समवाय २०
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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