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अंगबाह्य आगम साहित्य ३७७ निशीथ के आचार, अग्र, प्रकल्प, चुलिका ये पर्याय नाम हैं। प्रायश्चित्तसूत्र का संबंध चरणकरणानयोग के साथ है। अतः इसका नाम आचार है। आचारांगसूत्र के पांच अन हैं। चार आचारचूलाएँ और निशीथ ये पांच अग्र हैं इसलिए निशीथ का नाम अग्र है। निशीथ की नवें पूर्व आचारप्रामृत से रचना की गई है इसलिए इसका नाम प्रकल्प है। प्रकल्पन का द्वितीय अर्थ छेदन करने वाला भी है। आगम साहित्य में निशीथ का आयारपकप्प यह नाम मिलता है। अग्र और चूला समान अर्थ वाले
निशीथ के रचयिता अर्थ की दृष्टि से भगवान महावीर हैं और सूत्र के रचयिता के संबंध में अनेक अभिमत हैं। आचारांगचूणि में रचयिता के संबंध में चर्चा करते हुए स्थविर शब्द का प्रयोग किया है और स्थविर का अर्थ गणधर किया है। आचार्य शीलांक ने श्रुतवृद्ध चतुर्दश पूर्वधर को ही स्थविर कहा है। पंचकल्पभाष्य की चूणि में लिखा है कि आचारप्रकल्प का प्रणयन भद्रबाह स्वामी ने किया। निशीथसूत्र की कितनी ही प्रशस्तिगाथाओं के अनुसार उसके रचयिता विशाखाचार्य हैं। श्वेतांबर पावलियों
१ आयारो अग्गं चिय, पकप्प तह चूलिका णिसीहंति । -निशीषभाष्य ३ २ वही ५७ ३ निशीथचूणि, पृ० ३० ४ एयाणि पुण आयारग्गाणि आयार चेव निज्जूढाणि । केण णिज्जूढाणि ? थेरेहिं (२८७) थेरा-गणधराः ।।
--आचारांगण पृ० ३३६ ५ स्थविरः श्रुतवृद्धश्चतुर्दशपूर्वविद्धि --आचारांगनियुक्ति गा० २८७ ६ तेण भगवता आयार पकप्प-दसा-कप्प व्यवहारा य नवमपुष्वनीसंदभूता निज्जूढा ।
-पंचकल्पचूणि, पत्र १७ हत्कल्पसूत्रम्, षष्ठ विभाग, प्रस्तावना पृ०३ ७ दसण परित्त जुत्तो, जुत्तो गुत्तीसु सज्जणहिएसी।
नामेण विसाहगणी महत्तरओ णाण-मंजूसा ॥१॥ कित्ती-कंति-पिणडो जसपत्तो पडहो तिसागरनिरुद्धो । पुणरुत्तं भमति महिं, ससिव्व गगणं गणं तस्स ॥२॥ तस्स लिहियं निसीहं धम्म-धुरा-धरण-पवर-पुथ्वस्स । आरोग्गं धारणिज्जं सिस्सपसिस्सोवभोज्जं च ॥३॥
-निशीथसूत्र, चतुर्थ विभाग, पृ. ३६५