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________________ ३७६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। क्योंकि यह आगम विधि - निषेध का प्रतिपादन करने वाला नहीं अपितु प्रायश्चित्त का प्रतिपादन करने वाला है। इस कथन में श्वेताम्बर और दिगंबर दोनों आचार्यं एकमत हैं। चूर्ण में निशीथ को प्रतिषेधसूत्र या प्रायश्चित्तसूत्र का प्रतिपादक बताया है। निशीथभाष्य में लिखा है कि आयारचूला में उपदिष्ट क्रिया का अतिक्रमण करने पर जो प्रायश्चित्त आता है उसका निशीथ में वर्णन है । निशीथसूत्र में अपवादों का बाहुल्य है। इसलिए सभा आदि में इसका वाचन नहीं करना चाहिए। अनधिकारी के सन्मुख उसका प्रकाश्य न हो अतः रात्रि या एकान्त में पठनीय होने से निशीथ का अर्थ संगत होता है । निसिहिया का जो निषेधपरक अर्थ है उसकी संगति भी इस प्रकार हो सकती है कि जो अनधिकारी हैं उनको पढ़ाना निषेध है और जन से आकुल स्थान में पढ़ना निषिद्ध है । यह केवल स्वाध्याय भूमि में ही पठनीय है। 1 हरिवंशपुराण में 'निषद्यक' शब्द आया है। संभव है कि यह सूत्र विशेष प्रकार की निषद्या में पढ़ाया जाता होगा इसीलिए इसका नाम निषद्यक रखा गया हो। आलोचना करते समय आलोचक आचार्य के लिए निषद्या की व्यवस्था करता था। संभव है प्रस्तुत अध्ययन के समय में भी निषद्या की व्यवस्था की जाती होगी। इसलिए निशीथभाष्य में इसका उल्लेख मिलता है।* १ (क) आयारपकप्पस्स उ इमाई गोणाई णामधिज्जाई । आयारमाइयाई पायच्छित्तेण उहीगारो ॥ (ख) णिसिहियं बहुविपायच्छित्तविहाणवण्णणं कुणइ । ३ -- षट्खण्डागम, भा० १, पृ० १८ २ तत्र प्रतिषेधः चतुर्थचूडात्मके आचारे यत् प्रतिषिद्ध तं सेवंतस्स पच्छितं भवति त्ति काउं । - निशोषण, भा० १, पृ० ३ आयारे चउसु य, चूलियासु उवएसवितहकारिस्स । पच्छित मिहज्झयणे भणिय अण्णेसु य पदेसु ॥ ४ वही ६३८६ ५. सुतत्यतदुभयाण - निशीथ भाष्य गा० २ गहणं बहुमानवियमच्छेर । उक्कु - णिज्ज-अंजलि गहितामहियम्मिय पणामो ॥ - निशीषभाव्य ७१ वही, सूत्र ६६७३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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