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________________ ४. निशीथसूत्र छेदसूत्रों में निशीथ का प्रमुख स्थान है। निशीथ का अर्थ अप्रकाश है। यह सूत्र अपवादबहुल है अतः यह हर किसी को नहीं पढ़ाया जाता । तीन प्रकार के पाठक होते हैं - ( १ ) अपरिणामक - जिनकी बुद्धि अपरिपक्व होती है, (२) परिणामक - जिनकी बुद्धि परिपक्व होती है। (३) अतिपरिणामक जिनकी बुद्धि तर्कपूर्ण होती है। अपरिणामक और अतिपरिणामक ये दोनों पाठक निशीथ पढ़ने के अयोग्य हैं। जो आजीवन रहस्य को धारण कर सकता हो वही उसके पढ़ने का अधिकारी है। यहाँ पर जो 'रहस्य' शब्द है वह इसकी गोपनीयता को प्रगट करता है। निशीथ का अध्ययन वह साधु कर सकता है जो तीन वर्ष का दीक्षित हो और गांभीर्य आदि गुणों से युक्त हो । प्रौढ़ता की दृष्टि से कक्षा में बालवाला १६ वर्ष का साधु ही निशीथ का वाचक हो सकता है । निशीथ का ज्ञाता हुए बिना कोई भी श्रमण अपने संबंधियों के यहाँ भिक्षा के लिए नहीं जा सकता" और न वह उपाध्याय आदि पद के योग्य ही माना जा सकता है।" श्रमण-मंडली का अगुआ होने १ जं होति अप्पगासं तं तु मिसीहं ति लोग संसिद्ध । जं अप्पTreeम्मं अण्णे पि तयं निसीधं ति ॥ - निशीथभाष्य, इलोक ६४ २ पुरिसो तिविहो परिणामगो, अपरिणामगो, अतिपरिणामगो, तो एत्थ अपरिणामगअतिपरिणामगाणं पडिसेहो । -- निशीचचूर्ण, पृ० १६५ ३ निशीथमाष्य ६७०२-३ ४ (क) निशीथचूर्णि मा० ६२६५ (ख) व्यवहारभाष्य, उद्देशक ७ गा० २०२-३ (ग) व्यवहारसूत्र, उद्देशक १०, गा० २०-२१ ५. व्यवहारसूत्र, उद्देशक ६, सू० २, ३ ६ वही, उद्देशक ३, सू० ३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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