________________
अंगबाह्य आगम साहित्य ३७३ ५. शैक्ष- छात्र की, ६. ग्लान रुग्ण की, ७. साधर्मिक की, ८. कुल की है. गण की, और १०. संघ की वैयावृत्य ।
उपर्युक्त दस प्रकार की वैयावृत्य से महानिर्जरा होती हैं ।
उपसंहार
इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र की अनेक विशेषताएँ हैं। इसमें स्वाध्याय पर विशेष रूप से बल दिया गया है। साथ ही अयोग्यकाल में स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है। अनध्याय काल की विवेचना की गई है। श्रमणश्रमणियों के बीच अध्ययन की सीमाएँ निर्धारित की गई हैं। आहार का कवलाहारी, अल्पाहारी और ऊनोदरी का वर्णन है। आचार्य, उपाध्याय के लिए विहार के नियम प्रतिपादित किए गए हैं। आलोचना और प्रायश्चित्त की विधियों का इसमें विस्तृत विवेचन है । साध्वियों के निवास, अध्ययन, चर्या व उपधान, वैयावृत्य तथा संघ व्यवस्था के नियमोपनियम का विवेचन है । इसके रचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहु माने जाते हैं ।
0