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________________ ३७२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा की जाती है । शुक्लपक्ष में क्रमशः एक-एक दत्ति बढ़ाते हुए पूर्णिमा को उपवास किया जाता है । इस प्रकार ३० दिन की प्रत्येक प्रतिमा के प्रारम्भ के २६ दिन दत्ति के अनुसार आहार और अन्तिम दिन उपवास किया जाता है। व्यवहार के आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीतव्यवहार-ये पाँच प्रकार हैं। इनमें आगम का स्थान प्रथम है और फिर क्रमशः इनकी चर्चा विस्तार से भाष्य में है। स्थविर के जातिस्थविर, सूत्रस्थविर और प्रवज्यास्थविर-ये तीन भेद हैं। ६० वर्ष की आयु वाला श्रमण जातिस्थविर या वयःस्थविर कहलाता है। ठाणांग, समवायांग का ज्ञाता सूत्रस्थविर और दीक्षा धारण करने के २० वर्ष पश्चात् की दीक्षा वाले निर्ग्रन्थ प्रव्रज्यास्थविर कहलाते हैं। शैक्ष भूमियाँ तीन प्रकार की हैं-सप्त-रात्रिदिनी, चातुर्मासिकी और षण्मासिकी। आठ वर्ष से कम उम्र वाले बालक-बालिकाओं को दीक्षा देना नहीं कल्पता । जिनकी उम्र लघु है वे आचारांगसूत्र के पढ़ने के अधिकारी नहीं हैं। कम से कम तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाले साधु को आचारांग पढ़ाना कल्प्य है। चार वर्ष की दीक्षापर्याय वाले को सूत्रकृतांग, पांच वर्ष की दीक्षापर्याय वाले को दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प (बहत्कल्प) और व्यवहार, आठ वर्ष की दीक्षा वाले को स्थानांग और समवायांग, दस वर्ष की दीक्षा वाले को व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती), ग्यारह वर्ष की दीक्षा वाले को लघुविमानप्रविभक्ति, महाविमान-प्रविभक्ति, अंगचूलिका, बंगचूलिका और विवाहचूलिका, बारह वर्ष की दीक्षा वाले को अरुणोपपातिक, गरुलोपपातिक, धरणोपपातिक, वैधमणोपपातिक और वैलंधरोपपातिक, तेरह वर्ष की दीक्षा वाले को उपस्थानश्रुत, समुपस्थानश्रुत, देवेन्द्रोपपात और नागपरियापनिका (नागपरियावणिआ), चौदह वर्ष की दीक्षा वाले को स्वप्न भावना, पन्द्रह वर्ष की दीक्षा वाले को चारणभावना, सोलह वर्ष की दीक्षा वाले को वेदनी शतक, सत्रह वर्ष की दीक्षा वाले को आशीविषभावना, अठारह वर्ष की दीक्षा वाले को दृष्टिविष भावना, उन्नीस वर्ष की दीक्षा वाले को दृष्टिवाद और बीस वर्ष की दीक्षा वाले को सब प्रकार के शास्त्र पढ़ाना कल्प्य है। बैयावृत्य (सेवा) दस प्रकार की कही गई है-१. आचार्य की वैयावृत्य, २. उपाध्याय की बयावृत्य उसी प्रकार, ३. स्थविर की, ४, तपस्वी की,
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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