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३५६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा नियम और संयम आदि का फल हो तो हम भी इस जैसे बनें। महारानी
चेलना के सुन्दर सलौने रूप व ऐश्वर्य को देखकर श्रमणियों के अन्तर्मानस में यह संकल्प हुआ कि हमारी साधना का फल हो तो हम आगामी जन्म में चेलना जैसी बनें । अन्तर्यामी महावीर ने उनके संकल्प को जान लिया
और श्रमण-श्रमणियों से पूछा कि क्या तुम्हारे मन में इस प्रकार का संकल्प हुआ है? उन्होंने स्वीकृति-सूचक उत्तर दिया-'हाँ, भगवन् ! यह बात सत्य है। भगवान ने कहा--'निर्ग्रन्थ-प्रवचन सर्वोत्तम है, परिपूर्ण है, संपूर्ण कों को क्षीण करने वाला है। जो श्रमण या श्रमणियां इस प्रकार धर्म से विमुख होकर ऐश्वयं आदि को देखकर लुभा जाते हैं और निदान करते हैं वे यदि बिना प्रायश्चित्त किए आयु पूर्ण करते हैं तो देवलोक में देवलोक में उत्पन्न होते हैं और वहाँ से वे मानवलोक में पुन: जन्म लेते हैं। निदान के कारण उन्हें केवली धर्म की प्राप्ति नहीं होती। वे सादा सांसारिक विषयों में ही मुग्ध बने रहते हैं।' शास्त्रकार ने प्रकार के निदानों का वर्णन कर यह बताया कि निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सब कर्मों से मुक्ति दिलाने वाला एकमात्र साधन है । अतः निदान नहीं करना चाहिए और किया हो तो आलोचनाप्रायश्चित्त करके मुक्त हो जाना चाहिए। उपसंहार - इस प्रकार प्रस्तुत आगम में भगवान महावीर की जीवनी विस्तार से आठवीं दशा में मिलती है। चित्त-समाधि एवं धर्म चिन्ता का सुन्दर वर्णन है। उपासक प्रतिमा व भिक्षु प्रतिमाओं के भेद-प्रभेदों का भी वर्णन है।