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________________ .. जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन .. पूर्व श्रुत व आगम साहित्य की अनुपम मणि-मंजूषा है। कोई भी विषय ऐसा नहीं है जिस पर पूर्व साहित्य में विचार-चर्चा न की गई हो। पूर्वश्रत के अर्थ और रचना काल के सम्बन्ध में विज्ञों के विभिन्न मत हैं। आचार्य अभयदेव आदि के अभिमतानुसार द्वादशांगी से प्रथम पूर्व साहित्य निर्मित किया गया था। इसी से उसका नाम पूर्व रक्खा गया है। कुछ चिन्तकों का यह मंतव्य है कि पूर्व भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा की श्रुतराशि है। श्रमण भगवान महावीर से पूर्ववर्ती होने के कारण यह 'पूर्व' कहा गया है। जो हो, इतना तो स्पष्ट है कि पूर्वो की रचना द्वादशांगी से पहले वर्तमान में पूर्व द्वादशांगी से पृथक् नहीं माने जाते हैं। दृष्टिवाद बारहवाँ अंग है। पूर्वगत उसी का एक विभाग है तथा चौदह पूर्व इसी पूर्वगत के अन्तर्गत हैं । जैन अनुश्रुति के अनुसार श्रमण भगवान महावीर ने सर्वप्रथम 'पूर्वगत' अर्थ का निरूपण किया था और उसे ही गौतम प्रभृति गणधरों ने पूर्वध त के रूप में निर्मित किया था। किन्तु पूर्वगत श्रुत अत्यन्त क्लिष्ट और गहन था, अतः उसे साधारण अध्येता समझ नहीं सकता था। एतदर्थ अल्प मेधावी व्यक्तियों के लिए आचारांग आदि अन्य अंगों की रचना की गई। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने स्पष्ट कहा है.---'दृष्टिवाद में समस्त शब्द ज्ञान का अवतार हो जाता है तथापि ग्यारह अंगों की रचना अल्प मेधावी १ (क) प्रथमं पूर्व तस्य सर्वप्रवचनात् पूर्व क्रियमाणत्वात् । -समवायांग वृत्ति, पत्र १०१ (ख) सर्वश्रुतात् पूर्व क्रियते इति पूर्वाणि, उत्पादपूर्वाऽदीनि चतुर्दश। -स्थानांगसूत्र वृत्ति १०१ (ग) जम्हा तित्थकरो तित्थपवत्तणकाले गणधराणं सक्वसुत्ता-धारत्तणती पुब्वं पुवगतसुत्तत्थं भासति तम्हा पुव्वं ति मणिता। -नन्दीसूत्र (विजयदान सूरि संशोधित पूणि पृ०१११ अ) २ (क) अन्ये तु व्याचक्षते पूर्व पूर्वगत सूत्रार्थमहन् भाषते, मणधरा अपि पूर्व पूर्व . गतसूत्रं विरचयन्ति पश्चादाचारादिकम् । -नन्दी, मलयगिरि, पृ० २४० (ख) पुवाणं गयं पत्त-पुवसरूवं वा पुव्वगयामिदि गणणामं । -षट्खंडागम (धवला टीका) बोरसेनाचार्य पु०१ पृ० ११४
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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